निर्जला एकादशी: मोक्ष प्राप्ति का माध्यम
हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार एकादशी व्रत का काफी अधिक महत्व माना जाता है एकादशी के व्रत के दिन सूर्योदय से लेकर दूसरे दिन के सूर्योदय तक जल और ग्रहण न करने की मान्यता है।
जल और अन्न ग्रहण न करने के पीछे एकमात्र वजह यह बताई जाती है कि अन्न और जल का त्याग कर श्रद्धापूर्वक एकादशी का व्रत करने वाले लोगों की सभी परेशानियां खत्म हो जाती हैं।निर्जला एकादशी, जो इस बार 31 मई 2023 को पड़ रही है का व्रत करने वाला व्यक्ति अपने सभी पापों से मुक्त हो जाता है और तत्पश्चात मोक्ष की प्राप्ति करता है।इस एकादशी को भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है।
यह भी कहा जाता है कि एकादशी के दिन दान पुण्य करने से मनुष्य को जीवन में अपेक्षित फलों की प्राप्ति होती है। दान स्वरूप कपड़े ,जूते ,फल,खाना,पुस्तकें या जल भी दिया जा सकता है और पुण्य प्राप्त किया जा सकता है।एकादशी के दिन गंगा स्नान को भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।कहा जाता है कि यदि इस दिन सुबह सवेरे नहा धोकर भगवान विष्णु को तुलसी चंदन रोली चावल और पीले रंग के फूल फल श्रद्धा पूर्वक चढ़ाए जाते हैं तो भगवान विष्णु अति प्रसन्न होते हैं और इच्छित वर को फलीभूत कर देते हैं।
गौरतलब है कि एकादशी का व्रत पूरा होने के बाद भी तुरंत अन्न जल ग्रहण नहीं किया जाता अपितु विधि पूर्वक किसी ब्राह्मण को भोजन करवाने के पश्चात ही व्रत करने वाले को जल और अन्न ग्रहण करना चाहिए,तभी यह व्रत संपन्न माना जाता है।
निर्जला एकादशी के दिन भक्तजन विभिन्न स्थानों पर मीठे पानी के छबील लगाते हैं और पुण्य कमाते हैं ।इस दिन गरीब और किसी असहाय व्यक्ति को यदि शुद्ध पानी से भरा हुआ मटका दान किया जाता है तो जीवन में दुखों और कष्टों से मुक्ति मिलती है ,ऐसा माना जाता है ।इसी वजह से इस एकादशी के दिन लोग जगह-जगह पर घड़े खरीदते नजर आते हैं और उन घड़ों को पानी से भर कर दान करते हैं और पुण्य कमाते हैं।
निर्जला एकादशी अथवा सामान्य मासिक एकादशी के दिन कुछ कार्य न करने की भी मान्यता है।एकादशी के दिन इन कार्यों को करने पर धार्मिक मान्यताओं के अनुसार प्रतिबंध सा समझा जाता है:जैसे ,एकादशी के दिन किसी निर्धन का अपमान न करें और सुबह सवेरे देर तक न सोते रहें।
निर्जला एकादशी के दिन लोग जगह-जगह पर वस्त्र पानी शरबत इत्यादि का दान करते हैं ।कई लोग इस दिन प्यासे मनुष्यों व जीव जंतुओं,पशुओं आदि की प्यास बुझाने के लिए प्याऊ लगवा कर भी पुण्य कमाते हैं। पक्षियों को दाना डालते हैं,गायों को खाना खिलाते हैं और जरूरतमंदों को भरपेट भोजन भी कराते हैं। ऐसा समझा जाता है कि इन सभी सदकर्मों से मनुष्य सद्गति प्राप्त करता है अर्थात उसे जीवन रूपी यात्रा को पूरा करने के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है ।जीते जी भी वह कष्टों परेशानियों दुखों और मुश्किलों से अधिकतर दूर रहता है।
वस्तुत:सभी धार्मिक मान्यताओं का अपना एक विशेष महत्व समझा जाता है। इनको मानना न मानना व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है ।इस आलेख द्वारा किसी भी व्यक्ति , जाति और धर्म की धार्मिक मान्यताओं एवं आस्थाओं को ठेस पहुंचाने का मेरा कोई उद्देश्य नहीं है,अपितु अपने आसपास के व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर ही मैंने यह लेख लिखा। इस लेख को लिखने के पीछे मेरा उद्देश्य केवल धार्मिक मान्यताओं को जीवित रखने का प्रयास मात्र है ,किसी अंधविश्वास एवं कुरीति को बढ़ावा देना नहीं।
— पिंकी सिंघल