कविता – कभी एहसास को अपने…
कभी एहसास को अपने कभी जज्बात को अपने |
लिखा करना मेरे दिल तू कभी ख्यालात को अपने ||
महफ़िल में बेशक रहना मगर खुद से भी मिल लेना |
खुदी से पूछ लेना फिर सभी सवालात को अपने ||
लेकर स्वेद की बूँदें बनाना पंख सपनों के |
बदलना गर तू चाहता है कठिन हालात को अपने ||
अगर मन हार जाये तो समझना जीत मुश्किल है |
कभी दिल में न देना तुम जगह डर – मात को अपने ||
बमों के दौर में मुझको लगे ऐसा मेरे यारो |
कहीं खुद ही न कर दे खत्म मानव ज़ात को अपने |
गुजरा है उसी का दिन उसी की सांझ खुशियों में |
किया जिसने नहीं बर्बाद कभी प्रभात को अपने ||
दुआओं में हमेशा माँगना जग के लिए खुशियाँ |
सकूं से भरना चाहो तुम अगर दिन – रात को अपने ||
— अशोक दर्द