लघुकथा

लघुकथा – कटु वाणी

“क्या हुआ? “
“लक्ष्मी आई है। “
“खाक लक्ष्मी आई है।तीसरी बार भी लड़की ही।” और,सासू मां ने अनीता को वहीं अस्पताल में ही कोसना शुरु कर दिया।
शोरशराबा सुनकर अनीता का ऑपरेशन करके उसके बच्चे की डिलीवरी कराने वाली डॉक्टर बाहर आई और सासू माँ पर गुर्राते हुए बोली- “माँ जी! क्या आप नहीं जानतीं, कि बच्चे को पहले नौ माह पेट में रखना, फिर जन्म देना,वह भी ऑपरेशन से, कितना कठिन होता है? आपने पोते की चाहत में अपनी बहू को तीसरी बार ख़तरे में डाल दिया। आज का ऑपरेशन तो बहुत ही जटिल था,और बड़ी मुश्किल से अनीता की जान बची है। वैसे तो हर बार ही बच्चे को जन्म देना माँ के लिए पुनर्जन्म होता है, पर आप यह समझिए कि आज तो आपकी बहू मौत के दरवाजे से ही वापस लौटी है। और-आप संतोष का अनुभव करने की जगह उसे कोस रही हैं। लानत है आप पर। इतने विषैले बोल इतनी कटु वाणी ,आख़िर बहू का दोष ही क्या है?उसने एक बेटी को जन्म दिया है,तो बेटी बेटे से किसी भी तरह से कम है क्या ?मां जी अपनी कटुवाणी और रुग्ण मानसिकता का त्याग कर दीजिए, नहीं तो आगे जाकर आप बिलकुल अकेली रह जाएंगी।” इस पर सासू मां निरुत्तरित थीं।
— प्रो (डॉ) शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल[email protected]