वीरान पड़ा है दिल और ये दर्द की धूप,
गहरी है जुदाई ये भंवर सी और ये दर्द की धूप।
तन्हा दिल,दिए कि लौ भी चले है मध्यम,
इन चरागों के तले,जले अंधेरा और ये दर्द की धूप।
पलकों पे है सजाए तेरी यादों के लाखों दिए,
नहीं घटती आंखों की तारिकी और ये दर्द की धूप
रोशनी बनके दिल में था उतर जाना मुझको,
वीराँ चमन टिमटिमाती शबनम और ये दर्द की धूप
हमको निगल ये सके इन अंधेरों में दम कहां,
हुई जब चांदनी से मुलाकात और ये प्यार की धूप।
तारिकी – अंधकार
— बिजल जगड