लघुकथा – सही वक्त, सही निर्णय
विवाह के बाद से ही हर रात टिंकू नशे में धुर्त ही घर आता था ।( निशा ) पत्नी उसे हमेशा ना पीने की सलाह देती, लेकिन टिंकू एक ना सुनता। इस बात को लेकर आए दिन कहा -सुनी भी हो जाता, जिससे दोनों के बीच दूरियां भी बढने लगी । रात की बातें दिलों के बीच दीवार की रूपरेखा ले पूरे दिन मन -मस्तिष्क में घूमता।
एक दिन निशा टिंकू को समझाते हुए बड़े प्यार से बोली—— अब तुम यदि नशा कर के आओगे, तो मैं भी करूंगी। यह सुन टिंकू खुद को रोकना तो चाहा पर आदत से लाचार संध्या काल वह पुनः नशा करके ही घर आया। यह देख क्रोधित निशा भी एक बोतल गटक ली ।
लेकिन जैसे ही वह कमरे से बाहर निकली अचानक ससुर जी की नजर उस पर पड़ी।
—बहू , तुमने नशा कर रखा है!
हां पापा,
क्यों? जानती हो, यह सेहत के लिए कितना हानिकारक है। एक तरफ जहां इससे प्रशव में कष्ट होता है। वही बच्चों पर भी इसका गलत प्रभाव पड़ता है और तुम्हें इतना क्या कष्ट आन पड़ा जो शराब का सहारा लेना पड़ा ?
पापा, यह बात आप टिंकू को क्यों नहीं समझाते, जो हर रात नशे में डूबे रहते हैं जिसके कारण मेरी जिंदगी भी नर्क बन चुकी है। यहां तक कि मैं आंगन में एक फूल की उम्मीद भी नहीं कर पा रही हूं। इन कठिनाइयों के निदान की बजाए आप मुझ पर ही उंगली उठा रहे हैं । पापा वह विश्वविद्यालय के दिनों से ही नशा करते थे।आपने उन्हें यदि सही वक्त पर रोका होते तो आज यह दिन मुझे ना देखना पड़ता और आज तो उन्हें नशे से दूर करने के लिए मेरी एक प्रयास थी किंतु मैं असफल रही ।
निशा की यह बात सुन पिता की आंखें शर्म से झुक गई ,फिर बोले — शायद तुम सही कह रही हो। यह मेरी अधिक छूट का ही नतीजा है। बीते दिनों को मैं वापस तो नहीं ला सकता , लेकिन इस क्षेत्र में आज तुम जो भी कदम उठाओ गी, उसमें मैं तुम्हारे साथ हूं ।
एक ससुर द्वारा इतना कहना ही उसकी बहू को ऊर्जावान बना गया, जिसके सहारे वह कभी नशा मुक्त केंद्र, तो कभी प्रतिष्ठित डॉक्टरों से परामर्श कर धीरे-धीरे आगे बढ़ती गई और एक दिन टिंकू को नशा मुक्त करके अपने पति और बच्चे के साथ अब आराम की जिंदगी जीने लगी।
— डोली शाह