गीतिका/ग़ज़ल

भा गया

राम का सुपावन चरित्र भा गया।
मोहक स्वरूपमय सुचित्र भा गया ।
जीवन – सुरक्षा, अवलंब के लिए
‘राम राम’ नाम, अति पवित्र भा गया।
हृदय के तार – तार झनझना उठे
गुणगान करता, स्वरित्र भा गया।
परिजन – पुरजन दूर हो गए
त्रैलोक्यपति सन्मित्र भा गया ।
यदा-कदा ही प्रणेश सुस्मरण किया
कृपापूर्ण आपका अनित्र भा गया ।
— गौरीशंकर वैश्य विनम्र 

गौरीशंकर वैश्य विनम्र

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