राज़ कोई गहरा
धूप में रहे हम और चले सहरा सहरा
ढूंढा किये सब में आप ही का चेहरा
सारे जहां में घूमे तो देखीं दोहरी शक़्लें
एक अपना दिल ही रहा मानो इकहरा
आप तो जनाब हैं आगे ही बढ़ते जाएँ
हमपे वक़्त ऐसा ठहरा, के बस ठहरा
लबों पे आके सजती उन मुस्कुराहटों में
मुझको लगे छुपा है ज्यूं राज़ कोई गहरा
“गीत” दिल में गूंजते हज़ार तरह वाले
लबों पे लगे ताले लफ़्ज़ों पे लाख पहरा
— प्रियंका अग्निहोत्री “गीत”