जब कोई पागल प्रेमी
गोद देता है शरीर अपनी
प्रेमिका का करके चाकू
से वार कई ।
या फिर करके टुकड़े फेंक
देता है जंगलों में ।
सिहर उठती हूँ देखकर
कैसा खूनी प्यार है ये
जो इतना निर्दयी, बेरहम, कठोर
की जान का रहा न कोई मोल।
कभी एसिड अटैक
कभी निर्मम हत्या
कभी वहशीपन
कभी बर्बरता
कैसा फरेब है ये
प्यार के नाम पर
जो न झिझके, न हिचके,
न डरे, न सोचे , न घबराए
ज़रा भी
सिहर उठती हूँ देखकर
अक्सर सुर्खियां में देख सुन
ये खबरें इतनी अमानवीयता
वो भी प्यार, रिश्ते , संबंधों,
चाहत के नाम पर ।
क्या ये प्यार है या सिर्फ
छलावा, धोखा
जो प्रेम के नाम पर
करता सिर्फ वार
सिहर उठती हूँ देखकर
कत्लेआम यूँ बनाम प्यार।।
— मीनाक्षी सुकुमारन