गीतिका
आँख क्यों है भरी,क्यों नमी है बहुत
आँख की बूंद ये,कीमती है बहुत
नींद क्यों खो गई,क्यों हो बेचैन तुम
खोज लो चाँद को,चांदनी है बहुत
कायरों को कभी मान मिलता नही
जिन्दगी की लडा़ई कड़ी है बहुत
इस निराशा से होगा भला कुछ नही
आस,विश्वास की दो घड़ी है बहुत
छोड़ दो देखना,बस ये मरुथल यहाँ
प्यास अपनी बुझाओ,नदी है बहुत
जब लगे, हो अकेले जमाने में तुम
ढूंढ़ लो बस हँसी,ताजगी है बहुत
हार कर ही यहाँ,जीत मिलती सदा
दूर है जीत, तुममें कमी है बहुत
राह के सब अन्धेरे भुला कर बढ़ो
मन्जिलों पे सजी, रोशनी है बहुत
— शालिनी शर्मा