गर्मियों की छुट्टियां होते ही समर कैंप की भरमार लग जाती है हर सोसाइटी, छोटे बड़े स्कूल सब जगह बस एक ही गूंज रहती है समर कैंप जिसमें विभिन्न एक्टिविटी होती हैं स्विमिंग,कुकिंग, पेंटिंग, नृत्य, संगीत, जुडो, कराटे,अनेक खेल बच्चे भी मानो साल भर इंतज़ार करते हैं गर्मियों की छुट्टियां होने और समर कैंप में जाने का।
दीपू जो अपने बाबा के साथ चाय की रेड्डी पर बैठता है अक्सर सजे धजे मुस्कराते बच्चों को इन में जाता देखता तो अक्सर अपने बाबा से पूछता “बाबा ये समर कैंप होता क्या है”?
बाबा उसे झल्लाकर कह देते बेटा सब अमीरों के चोंचलें हैं और कुछ नहीं। बड़ी बड़ी गाड़ियों में आते हैं बच्चों को छोड़ जाते हैं ताकि कुछ समय घर से दूर रहे हैं, घर में बच्चे उधम न करें। पूरा टाइम अपने बच्चों को ही संभालने में रहेंगे तो अपनी किटी पार्टी, घूमना, शॉपिंग, सोशल ज़िन्दगी वगेरा कैसे जियेंगीं।
समर कैंप तो एक निज़ात सी मिल जाती है माँ बाप को बच्चों से की बिजी रहेंगे और थोड़ा बहुत कुछ न कुछ सीख लेंगे।
तभी दीपू बोला बाबा आज क्या आपकी जगह मैं चाय दे आऊँ बगल के स्कूल में। बाबा ने कड़ाई से पूछा क्यों? दीपू बोला बस ऐसे ही बाबा जाने दो न बस एक बार (असल में तो उसे एक बार खुद देखना था समर कैंप)।
बाबा बोले अच्छा जा दे आ गर्म केतली है चाय से भरी ध्यान से ले जाना।
बस दीपू को तो जैसे पंख मिल गए वो बड़ा खुश खुश उछलता , कूदता, खिलखिलाता एक हाथ में चाय की केतली और दूसरे में कागज़ के छोटे गिलास ले चल पड़ा आज तो समर कैंप को देखने की उसकी मुराद पूरी हो गयी हो।
जैसे ही स्कूल के गेट पर पहुंचा सजावट देख ठिठक गया। रंगीन गुब्बारों , रंगीन पोस्टर, रंगीन छाते और न जाने क्या क्या लगा था । वो इस चकाचौंध को निहारता हुआ आगे बढ़ा तो स्विमिंग पूल में बच्चे खूब मस्ती कर रहे थे तभी उसे आवाज़ लगी स्विमिंग कोच की छोटू एक कप चाय दे। दीपू झेंपते हुए स्वीमिंग पूल के किनारे किनारे चलते हुए उन तक पहुंचा”तभी कुछ बच्चे छोटू छोटू कह उस पर पानी फेंकने लगे, जिस से वो झेंप गया” तभी कोच ने बच्चों को समझाया बेटा गलत बात ऐसे नहीं करते चलो अपनी अपनी स्विमिंग पर ध्यान दो।
अब दीपू अंदर की ओर गया तो कुछ बच्चे गाना गा रहे तो कुछ डांस कर रहे थे। सब एक से एक सुन्दर कपड़ों में तभी दीपू ने खुद की ओर देखा फटी हुई निकर, फटी बनियान और छिले हुए नंगे पैर। वो ठिठक सा गया मन किया बस भाग जाए पर सबको चाय भी तो देनी थी।
वो हिम्मत कर आगे बढ़ा तो बच्चे सुन्दर सुन्दर मिट्टी के खिलौने, गमले, फूलदान, उन पर रंगाई कर रहे थे। कुछ लोग पेपर पर ड्रॉइंग कर रहे थे। थोड़ा आगे बच्चे जूडो कराटे सीख रहे थे। बाहर की तरफ आया था अलग अलग खेल क्रिकेट, फुटबॉल, बास्केटबॉल, बेसबॉल, बैडमिंटन , टेनिस आदि सब कितने मस्त, खुश और उत्साहित थे।
दीपू ठगा सा रह गया और बेमन सा लौट आया अपने चाय के ठेले पर। तभी बाबा ने पूछा देख आया समर कैंप जिसके लिए उतावला था जाने को।
दीपू रुआंसा से बोला हाँ देख आया आप सही कह रहे थे ये सब बड़े लोगों के ही बस का है, कल से आप ही जाना चाय देने।
एक सुन्दर सपने से था जो समर कैंप दीपू के लिए अब वो हकीकत बन उसे कचोट रहा था। उदास सा खोया खोया सा दीपू बस चुपचाप सा स्कूल की ओर पीठ कर बैठ गया और फिर कभी न उन गाड़ियों की ओर देखा न बच्चों की ओर, न ही कोई सवाल ही पूछा समर कैंप को लेकर जिसकी तस्वीर वो खुद खुली आँखों से देख आया था। और उसका सच तो था बाबा की चाय की रेढ़ी, एक तरफ उबलती चाय तो दूसरी और चढ़ी कढ़ाई जिस में समोसे, ब्रेड पकौड़े निकलते रहते और लोग जो चाय के साथ समोसे या ब्रेड पकोड़ा खाते जिसका दूर दूर तक समर कैंप से कोई दूर का भी वास्ता न था जो दीपू अब समझ चुका था भले ही दुःखी मन से।
— मीनाक्षी सुकुमारन