मुक्तक/दोहा

सोलह आने सच

पिता सदा भगवान हैं,माँ देवी का रूप।
मात-पिता से ही सदा,संतानों को धूप।।
–यह सोलह आने सच है।
संतति के प्रति कर्म कर,रचते नव परिवेश।
मात-पिता संतान प्रति,सहते अनगिन क्लेश।।
    –यह सोलह आने सच है।
चाहत यह ऊँची उठे,उनकी हर संतान।
पिता त्याग का नाम है,माँ भावुकता का गान।।
   -यह सोलह आने सच है।
निर्धन पितु भी चाहता,सुख पाए औलाद।
माता देती पौध को,हवा,नीर अरु खाद।।
   -यह सोलह आने सच है।
माँ भूखा रह दुख सहे,तो भी नहिं है पीर।
कष्ट,व्यथा को सह रहा,पिता बना नित धीर।।
    -यह सोलह आने सच है।
निर्धन पितु नित कष्टमय,पर सींचे परिवार।
माता रोटी दे रही,नहीं मानती हार।।
   -यह सोलह आने सच है।
पिता सदा मुश्किल सहे,पर रहता है मौन।
माता बाँटे लाड़ नित,उस जैसा नहिं कौन।।
     -यह सोलह आने सच है।
पिता ईश का रूप है,कर्मों का प्रतिरूप।
माँ दायित्वों से भरी,संघर्षों की धूप।।
    -यह सोलह आने सच है।
पिता फर्ज़ के पथ चले,करें आज सब गौर।
कठिनाई का चल रहा,माता के सँग दौर।।
    -यह सोलह आने सच है।
— प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल[email protected]