ग़ज़ल
मैं ख़फ़ा हूँ, आप सुनते क्यूँ नहीं?
ग़मज़दा हूँ, आप सुनते क्यूँ नहीं?
आप तक जो बात पहुँची, मैं अलग
मामला हूँ, आप सुनते क्यूँ नहीं?
आप मुंसिफ़, माँगकर इंसाफ़ मैं,
थक गया हूँ, आप सुनते क्यूँ नहीं?
पाइएगा ही गुनाहों की सज़ा,
क़ायदा हूँ, आप सुनते क्यूँ नहीं?
हिल रही है पाँव के नीचे ज़मीं,
ज़लज़ला हूँ, आप सुनते क्यूँ नहीं?
— बृज राज किशोर ‘राहगीर’