कविता

महिला पहलवानों के आंदोलन के समर्थन में

ये कैसा शौक है

तुम्हारे समाज का

प्रेम के साथ ही

छलावा करता है

एक क्षण में सारी

दुनिया उजाड़ देता है

कभी दर्द देता है तो

कभी लूट लेता है

न कोई लाज है

न कोई लिहाज

सरे राह  यूँ ही

छेड़ देता है

जख्म देता है और

जान भी लेता है

रंग बदलती इस दुनिया में

यूँ ही बेबस छोड़ देता है ..,

यूँ ही बेबस छोड़ देता है ..,

— के एम भाई 

के.एम. भाई

सामाजिक कार्यकर्त्ता सामाजिक मुद्दों पर व्यंग्यात्मक लेखन कई शीर्ष पत्रिकाओं में रचनाये प्रकाशित ( शुक्रवार, लमही, स्वतंत्र समाचार, दस्तक, न्यायिक आदि }| कानपुर, उत्तर प्रदेश सं. - 8756011826