/ छात्र हूँ मैं/
हे मंद मति !,
अंध परंपरा का हे मेरी मूढ़ बुद्धि !
मैं छात्र हूँ,
जिज्ञासु हूँ,
विचारों का अधिकारी हूँ मैं,
मेरे चारों ओर
सीमित लकीर मत खींचो,
मेरा विषय न किसी प्रांत का
होता है,
ना वर्ण – जाति, धर्म का होता है,
देश, काल, विश्वासों को पारकर
मानव विकास यात्रा का
अध्येता हूँ मैं,
विश्व मानव कल्याण की दिशा में
चलता है मेरा विचार,
मानव के सुख – सुविधाओं के
आविष्कार की दिशा में
चलने दो मुझे,
वैश्विक दुनिया में कदम लेना
हक है मेरा,
जलधि किनारे पर
ढ़ूँढ़ने से सीप-घोंघे मिलते हैं
उसके तह में होती है मोती,
डूबने दो मुझे, उस ज्ञान सागर में
असलियत का अहसास करने दो,
छात्र हूँ,
पिपासु हूँ मैं,
रक्त नहीं
पीने दो मुझे भाईचारे का ज्ञानामृत,
कल का समाज हूँ,
स्वेच्छा, समानता, स्वतंत्रता,
विश्व बंधुता का मूलमंत्र,
लौकिक तंत्र मुझे पढ़ने दो,
स्वार्थ, कुटिल नीतियों से मुक्त
अनंत आकाश में उड़ने दो,
हजारों सालों की मानव प्रगति का
सार मुझे जानने दो
नव युग के निर्माण में
अपना कुछ जोड़ने दो।