कविता

/ छात्र हूँ मैं/

हे मंद मति !,
अंध परंपरा का हे मेरी मूढ़ बुद्धि !
मैं छात्र हूँ,
जिज्ञासु हूँ,
विचारों का अधिकारी हूँ मैं,
मेरे चारों ओर
सीमित लकीर मत खींचो,
मेरा विषय न किसी प्रांत का
होता है,
ना वर्ण – जाति, धर्म का होता है,
देश, काल, विश्वासों को पारकर
मानव विकास यात्रा का
अध्येता हूँ मैं,
विश्व मानव कल्याण की दिशा में
चलता है मेरा विचार,
मानव के सुख – सुविधाओं के
आविष्कार की दिशा में
चलने दो मुझे,
वैश्विक दुनिया में कदम लेना
हक है मेरा,
जलधि किनारे पर
ढ़ूँढ़ने से सीप-घोंघे मिलते हैं
उसके तह में होती है मोती,
डूबने दो मुझे, उस ज्ञान सागर में
असलियत का अहसास करने दो,
छात्र हूँ,
पिपासु हूँ मैं,
रक्त नहीं
पीने दो मुझे भाईचारे का ज्ञानामृत,
कल का समाज हूँ,
स्वेच्छा, समानता, स्वतंत्रता,
विश्व बंधुता का मूलमंत्र,
लौकिक तंत्र मुझे पढ़ने दो,
स्वार्थ, कुटिल नीतियों से मुक्त
अनंत आकाश में उड़ने दो,
हजारों सालों की मानव प्रगति का
सार मुझे जानने दो
नव युग के निर्माण में
अपना कुछ जोड़ने दो।

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।