‘प्र’ से प्रोत्साहक ‘प्र’ से प्रसंग
”आदरणीय दीदी सादर प्रणाम, आपके ‘प्र’ से प्रोत्साहन द्वारा ‘प्र’ से प्रगति तक पहुंचने का सौभाग्य मिला है.” गौरव द्विवेदी के हृदय से उद्गार निःसृत हुए.
”’प्र’ से प्रयास भी आपका और ‘प्र’ से प्रतिभा भी आपकी! शुक्र है भगवान ने दोनों ‘प्र’ दिए हैं. तभी ‘प्र’ से प्रयास और ‘प्र’ से प्रतिभा द्वारा ‘प्र’ से प्रगति संभव हुई है.”
”आदरणीय दीदी, ‘प्र’ से प्रोत्साहन का ‘प्र’ भी ‘प्र’ से प्रगति के लिए पथ ‘प्र’ से प्रशस्त करता है.”
”वाह गौरव! एक और ‘प्र’ निकाल लिया! पथ प्रशस्त होगा, तभी तो ‘प्र’ से प्रगति तक पहुंचने का ‘प्र’ से प्रयास किया जा सकता है न!”
”निःसंदेह! ‘प्र’ से प्रतिक्रिया भी तो ‘प्र’ से प्रयास ही है न! आप तो ‘प्र’ से प्रतिक्रिया से भी न जाने कितनों की ‘प्र’ से प्रोत्साहन देकर ‘प्र’ से प्रगति तक पहुंचने का मार्ग ‘प्र’ से प्रशस्त करती हैं. ‘प्र’ से प्रगति का मूल ‘प्र’ से प्रयास ही तो है!”
”गौरव भाई, ना ना करते—–आप पुनः प्रयास तक पहुंच गए!”
”जी दीदी, हमने तो ‘प्र’ से प्रतिक्रिया में मात्र एक पंक्ति लिखी थी-
”हर पराजय है एक नई जीत का शंखनाद.”
आपने तो ‘प्र’ से प्रतिक्रिया की एक पंक्ति से दीपावली को ‘प्र’ से प्रकाशित करती ‘प्र’ से प्रेरक कविता ”शंखनाद” लिख दी! ‘प्र’ से प्रणाम आपकी ‘प्र’ से प्रभावशाली लेखनी को!”
”’प्र’ से प्रणाम आपकी उस ‘प्र’ से प्रतिक्रिया की ‘प्र’ से प्रेरक पंक्ति को जिसने ‘प्र’ से प्रकाशित करने वाली ‘प्र’ से प्रेरक कविता ”शंखनाद” लिखवा दी!”
”आदरणीय दीदी, ‘प्र’ से प्रतिक्रिया, ‘प्र’ से प्रयास और ‘प्र’ से प्रतिभा निश्चय ही ‘प्र’ से प्रोत्साहन द्वारा ही ‘प्र’ प्रगति का पथ ‘प्र’ से प्रशस्त करती है. आशा है, आपके ब्लॉग के सभी ‘प्र’ से प्रेमी पाठक और ‘प्र’ से प्रतिक्रियाकारक भी मेरी इस राय से सहमत होंगे, कि अंततः आपका ‘प्र’ से प्रोत्साहन ‘प्र’ से प्रगति का मार्ग ‘प्र’ से प्रशस्त करता है. इसी के साथ आपको सभी ‘प्र’ से प्रेमी पाठकों और ‘प्र’ से प्रतिक्रियाकारकों को मेरा ‘प्र’ से प्रणाम.”