ईर्ष्या का दामन
कुम्हार ने मिट्टी से चिलम बनाई और फिर तोड़ दी, न जाने क्यों उसे रास नहीं आई! मिट्टी से ही फिर उसने सुराही बनाई और अपनी कला को निरखता ही रह गया!
मिट्टी भी बहुत खुश थी. कुम्हार ने आश्चर्य से खुश होने का कारण पूछा.
“पहले तुमने मुझे चिलम बनाया. चिलम के रूप में मैं स्वयं भी जलती और इंसान को भी जलाती. पर जब तुमने मुझे सुराही बना दिया तो मेरे जीवन में बहुत ही शानदार परिवर्तन आया. अब मैं भी शीतल रहूंगी और इंसान को भी शीतल रखूंगी”. मिट्टी ने जवाब दिया.
“मुझे भी ईर्ष्या का दामन छोड़ देना चाहिए, ईर्ष्या पहले मुझे ही जलाएगी!” ईर्ष्या के शिकार कुम्हार ने निश्चय किया.