कविता

गद्य कविता : तुम्हारे ही कारण…

तुम्हारे ही कारण है वजूद मेरा …

तुम हो तभी मैं बना हुआ, टिका हुआ हूँ

तुम जब तक गुड मॉर्निंग नहीं कहते, नहीं उगता सूरज तब तक

तुम गुड़ नाईट नहीं कहते, तब तक रात डरती है करीब आने से

तुम गुड-डे कहते हो, वही दिन अच्छा जाता है, बाकी दिन जाते खराब हैं,

तुमने हैप्पी  बर्थ डे नहीं कहा होता तो मेरी आयु जाने कितनी कम हो जाती,

यह भी संभव था कि मैं यह लिखने के लिए जिन्दा ही नहीं रहता।

मेरे परिजनों की मौत पर तुमने आरआईपी और श्रद्धान्जलि न दी होती तो उनका मोक्ष नहीं हो पाता, वे आज भी हमारे बीच होते भूत-प्रेत बनकर,

तुमने रोजाना भगवान के फोटो नहीं दिखाए होते तो मैं कैसे जान पाता कि मेरे धर्म में इतने सारे और खूबसूरत भगवान हैं, बड़े-बड़े मन्दिर और तीर्थ हैं, पण्डे और बाबे हैं, धर्म के अनगिनत धंधे हैं,

तुम्हारे सिद्धान्तवादी और आदर्श वाक्यों और धुंआधार बरसते रहने वाले उपदेशों ने ही मुझे जतलाया है कि इंसान के लिए क्या अनुकरणीय है, इन्हें पढ़-पढ़ कर ही मैं इंसान बनने की कोशिश करने लगा हूं, वरना जाने कितना बड़ा अपराधी, चोर, डाकू और बेईमान नेता होता,

तुम्हारे ही कारण मुझे समझ आ पायी है प्यार की,

तुम्हारे कारण ही सीख पाया हूं संयोग की खुशी और वियोग के विरह का अनुभव,

तुम्हारी वॉल पर शादी-ब्याहों के फोटो देख-देख कर ही मेरा मन हुआ और शादी कर ली, वरना कुँवारेपन के अभिशापों से घिरा ही रह जाता,

तुम्हारे द्वारा डाले गए सैल्फी फोटोज ने मुझे इतना उत्तेजित किया कि अब नदी-घाटी, पहाड़, किलों और सब जगह सैल्फी लेने के मामले में सेल्फिश होता जा रहा हूँ, मुझे न गिरने का भय है, न घायल होने का, सैल्फी मेरे लिए सब कुछ है चाहे कुछ भी हो जाए,

तुमने ही तो देश और दुनिया का बखान करते हुए सुन्दर-सुन्दर चित्रों और वीडियो से मन मोहा है मेरा, और मैं लालायित रहने लगा हूं सैर के लिए हर पल,

तुम्हारे ही कारण मुझे अहसास हो पाया है कि ये दुनिया कितनी बड़ी और मोहक है, ये दुनिया वाले फोटो में कितने सुन्दर, सभ्य और शालीन लगते हैं,

लाईक, कमेंट और शेयर करते हुए हजारों लोगों को कैसे खुश किया जा सकता है, यह भी तो तुमने ही सिखाया है,

और भी न जाने क्या-क्या बदलाव आता जा रहा है, तुम्हारी अद्भुत कल्पनाशीलता, अलौकिक विचारों और रचनात्मकता का मैं कायल हूँ,

तुम सभी लोग युगपुरुष और युगन्नारियां हो, युग परिवर्तन के सूत्रधार हो,

अब तो लगता है कि यह दुनिया तुम्हारे ही कारण है, उन सभी को भी अपनी हद में लाओ जो शेष रह गए हैं, तभी तो हो पाएगा युग परिवर्तन।

सार यही है कि तुम न होते तो मेरा क्या होता, मैं कहाँ होता, क्या करता।

 डॉ. दीपक आचार्य

*डॉ. दीपक आचार्य

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