कविता

बारिश

इस बारिश भीग लूँ ज़रा ,मन मस्तिष्क  को सींच लूँ ज़रा ,
जो दफन हो चुकी अभिलाषाएं फिर से वो अंकुरित  हो जाएं ।
नस नस मे हो वही संचार ,जिस से खुद किया किनार ,
धुल जाए सारा द्वेष  विकार ,आ भीग लूँ  फिर एक बार ।
कब  निकलूँ  मैं विषाद से जैसे  यह  प्रतीक्षा  युगों से
यह जो है दुःखों का सागर  होना है  इससे   मुझे पार  .
पहलेभी सावन बरसता था,अब भी सावन बरसता है ,
अबये मुझसे कुछ कहता है जैसे जीवन राग सुनाता है ।
पहले जब मैं आती थी ,तु मुझमें  घुल जाती थी ,
मैं तुझमें  खो जाती थी ,तु मुझमे रम जाती  थी ।
तु इठलाती, बलखाती ,अल्हड़ आवारा हो जाती थी.
मेरे स्पर्श से मुख मंडल तेरा खिल जाता था,
मन मयूर हो जाता था मैं पुलकित हो जाती थी ,
कुछ  देर और रुक जाती थी .
अब क्यों ये खामोश मन ,आते ही मेरे किवाड़ किये  बंद.
अब तुझे मैं  क्या नहीं पसंद ,तभी सोंचु क्यों  हूए मेरे वेग मन्द ।
पहले थी मेरी बूंदें  बे असर,ना खांसी ना  होता ज्वर .
याद है वो हिदायत  पहली बारिश मे नहाना है
घामौरियों   से   छूटकारा   पाना है .
अब  बूंदें  कतराती हैं ,खबर देकर मुकर जाती है.
ऐ बारिश तु क्यू है खफा ,अबकी बार जम कर आ
खडी हूँ घर के द्वार , अपनी बाहें पसार .
खोल दिये सारे खिड़की , किवाड़  , है सिर्फ तेरा  इंतजार .
आ जा ऐ बरखा बहार ,वो अल्हड़  – सा प्यार
सींच दुंगी खुद को, धो डालूँगी सारे विषाद
वो बचपन की बारिश से पहला – सा प्यार .
— सविता  सिंह मीरा

सविता सिंह 'मीरा'

जन्म तिथि -23 सितंबर शिक्षा- स्नातकोत्तर साहित्यिक गतिविधियां - विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित व्यवसाय - निजी संस्थान में कार्यरत झारखंड जमशेदपुर संपर्क संख्या - 9430776517 ई - मेल - [email protected]