ग़ज़ल
किस-किस को समझाए छोड़ो जाने दो
व्यर्थ न समय गंवाए छोड़ो जाने दो।
ना करनी थी बहस मगर हम कर बैठे
मन ही मन पछताए छोड़ो जाने दो।
सुलझ न पाए गुत्थी दुनियादारी की
क्यों खुद को उलझाए छोड़ो जाने दो।
फिक्र जमाने भर की करते रहते हो
खुद को भूल न जाए छोड़ो जाने दो।
लोगों का मुंह बन्द नहीं होगा “मधुजा”
खुद ही चुप हो जाए छोड़ो जाने दो।
— नीतू शर्मा ‘मधुजा’