लघुकथा

मिसाल

ऐसा होना स्वाभाविक भी था. दोनों की छटपटाहट बढ़ती जा रही थी. एक दूसरे से अलग कभी रहे जो नहीं थे. पड़ोसी तमाशा देख रहे थे और खुश हो रहे थे. उनकी मित्रता और खुशहाली से उनके सीने पर सांप जो लोट रहे थे!
सभी लोग एक जैसे नहीं होते. एक पड़ोसी उनके प्रेम-भाव का दीवाना था और झगड़े को सुलझाना चाहता था.
“रिश्तों की तुरपाई के लिए कभी-कभी सीवन को उधेड़ना भी पड़ता है.” उन्होंने बच्चों के पिताओं को सलाह दी.
“क्या मतलब! हम आपकी बात नहीं समझे!” दोनों ने एक साथ कहा.
“देखिए, अब तक आप दोनों की दोस्ती एक मिसाल बनी हुई थी. यह टूटन की यह दरार नहीं भरी, तो तमाशबीन तमाशा ही देखेंगे और आप और आपके परिवार वाले देखते ही रह जाएंगे. इसलिए ईर्ष्या को पनपने की इजाज़त मत दीजिए और मिलकर कोई हल निकालिए.” पड़ोसी ने खुलासा किया.
“हमें तो कुछ सूझ ही नहीं रहा, आप ही कोई हल सुझाइए न!” सचमुच वे हल ढूंढना चाहते भी थे.
“पूरी बात बताइए, कि झगड़ा है किस बात का!”
“हम यह घर बदलना चाहते हैं, बड़े भैय्या कह रहे हैं कि घर की कीमत का उन्हें बड़ा हिस्सा चाहिए. मेरा कहना है कि, आधा-आधा होगा.” छोटे भाई ने बताया.
“आपके बच्चों की एक जानकार आंटी हैं, वे वकील हैं. मैं उनसे बात करके आपको बताता हूं. जरा अपना मोबाइल दीजिए, मेरा घर पर रह गया है.”
“हैलो दीदी, मैं जमनादास बोल रहा हूं, आपसे एक सलाह करनी है.” पड़ोसी ने आंटी को फोन लगाया.
“लीजिए, मैं तो आपके घर ही आ रही थी, आप घर में हैं न!”
“दीदी, मैं अमन-चमन के घर बैठा हूं, उन्हें ही आपसे सलाह लेनी है. हमारे से दो मकान आगे ही उनका फ्लैट नं. 141 है, कृपया आप वहीं आ जाइए.”
तुरंत आंटी पहुंच भी गईं. सारी बात सुनकर निष्कर्ष रूप में उन्हें कहा- “छोटा-बड़ा भगवान ने बनाया है, प्रेम का अनमोल रिश्ता आपने अपने संस्कारों से जोड़ा है. घर जुड़ते-बिगड़ते रहते हैं, प्रेम का रिश्ता एक बार बिगड़ा तो जुड़ना मुश्किल है. बच्चों पर भी इसका बुरा असर पड़ सकता है, इसलिए बराबर-बराबर हिस्सा लेकर प्रेम के रिश्ते को बिगड़ने से बचाने का मार्ग प्रशस्त कीजिए. यही आप सबके लिए ठीक रहेगा.”
“बिलकुल सही सलाह दी है आपने.” अमन की मम्मी चाय-पकौड़े ले आई थीं, “इसी खुशी में मैं मिठाई भी ला रही हूं.”

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244