स्वप्न आँखों में जगे
गर्मियाँ हैं, अभी ऊपर और पारा जाएगा।
धूप में तपकर बेचारा, श्रमिक मारा जाएगा।
रहेंगे नेता पड़े, वातानुकूलित कक्ष में
युद्ध में बलिदान देने, सर्वहारा जाएगा।
कुआं खोदा जाएगा, जब सूचना हो आग की
कौन जाने, व्यवस्था को कब सुधारा जाएगा।
हार हो या जीत हो, पर लत जुए की है बुरी
जेब से ही धन, हमारा या तुम्हारा जाएगा।
हृदय होगा मर्म – आहत, क्या करें माता-पिता
कभी कोसों दूर जब, निज नयनतारा जाएगा।
भक्तगण में लौट आया, देव प्रति विश्वास दृढ़
सुना है, मंदिर पुरातन, फिर सँवारा जाएगा।
उठेगी दीवार आँगन बीच, भाई लड़ रहे
शांति छा जाएगी, लेकिन भाईचारा जाएगा।
बढ़ी कृत्रिम बुद्धिमत्ता, स्वप्न आँखों में सजे
लग रहा है, स्वर्ग धरती पर उतारा जाएगा।
— गौरीशंकर वैश्य विनम्र