कविता

खुद से मुलाकात

उस रोज खुद से मुलाकात हमने की
 देखकर खुद से थोड़ी सी मुस्कराई
पूरी उम्र तो तुमने परिवार में ही गुजार दी
थोड़ा समय अपने लिए भी निकालती
 दूसरों की खुशियों की चिंता करती रही
अपनी पसंद नापसंद को दरकिनार करती रही
कर्तव्य निभाते निभाते अपने सपने भूल गयी
सारा जीवन दूसरों की फ्रिक में निकालती रही
अब समय बचा तुम्हारे पास सपनों को पूरा करो
कुछ अच्छे कर्म करके जग में नाम करो
शोषित नारियों को अधिकार दिलवाओ
अनपढ़ लोगों का पढ़ाकर साक्षर बनाओ
मानव सेवा कर जीवन को धन्य बनाओ
मानव जीवन मिला प्रभु से इसका मोल चुकाओ
— पूनम गुप्ता

पूनम गुप्ता

मेरी तीन कविताये बुक में प्रकाशित हो चुकी है भोपाल मध्यप्रदेश