दोहे
ओस धरा को भा रही, हर्षित दिखा प्रभात
बूंद धरा की जिन्दगी जीवन,सांस, हयात
घन बरसे झमझम, कहें,लाये जल सौगात
सूखी धरती का हमें,ही,तो हरना ताप
जब गर्मी हो धूप हो,उमस भरी हो रात
बूंदे,बादल,बिजलियां,भाती है बरसात
कहीं बूंद उल्लास दे,और कहीं दे घात
बेहिसाब जल है कहीं,कहीं सूखते पात
नदियों में जल बढ़,रहा,खतरनाक हालात
नदी उफन कर बह रही,मेघ करें उत्पात
हालत बड़ी खराब है,बारिश दे आघात
कहे झोपड़ी थम जरा,क्यों बरसे दिन रात
आंधी और तूफान हैं,फैला झंझावात
मौसम कहीं सुहावना,कहीं कष्ट शुरूआत
— शालिनी शर्मा