सामाजिक

नामुमकिन कुछ भी नहीं

इज्जत, शोहरत, चाहत, पैसा, नाम इनमें से कुछ भी पाना नामुमकिन नहीं। बशर्ते कुछ समय के लिए सब कुछ छोड़ने की तैयारी रखो तो सब कुछ पा सकते हो। संघर्ष रत कहानी की नींव में मेहनत की इंट और पसीने के पिलर खड़े करोगे तो इमारत बेशक शानदार बनेगी।
कई बार देखा जाता है कि कुछ बच्चे पढ़ने लिखने की उम्र में लक्ष्य से भटक जाते है। गलत संगत और मौज मस्ती के चक्कर में पढ़ाई के प्रति बेदरकार होते ज़िंदगी का अहम समय गंवा देते है। फिर पूरी ज़िंदगी न घर के न घाट के जैसी हालत में भटकते रहते है। कोई दसवीं तक तो कोई बारहवीं तक पढ़ाई करके छोड़ देते है। आर्थिक रुप से अगर सक्षम नहीं हो तो स्टूडेन्ट लोन की सुविधा हर बैंक देती है। जिनके हौसले बुलंद होते है वह कुछ भी करके आगे बढ़ते है।
कुछ साल सब कुछ छोड़ दो, लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करो। हर विद्यार्थी को समझने की जरूरत है कि कुछ समय के लिए मौज मस्ती करनी है या पूरी ज़िंदगी ऐशो आराम में बितानी है। महज़ चंद सालों की कड़ी मेहनत आपको राजा बना सकती है। और चंद सालों का एशो आराम और मस्ती आपको कहीं का नहीं रखती।
एक ध्येय नक्की कर लीजिए कि मुझे ये बनना है और ये पाना है। और दिन रात बस उस लक्ष्य को पाने में लग जाईये। मेहनत से एक मुकाम हासिल करके एक कुर्सी पर बैठ जाईए और पूरी लगन से अपना शत-प्रतिशत दें, ज़िंदगी बहुत सहज लगेगी। दरअसल रोजगार की कमी नहीं, अगर आप में दम है तो काम सामने से आएगा। सरकार को कोसते वो लोग है जिनके पास ना डिग्री है, ना काम करने की कुनेह, ना काम करने की इच्छा। जो पढ़ लिखकर कुछ बनकर निकलते है उनके लिए नौकरी के असंख्य द्वार खुल्ले होते है।
इतने बड़े देश में लाखों कंपनियाँ और लाखों फैक्ट्रीयां है साथ में कन्स्ट्रकशन से लेकर छोटे बड़े असंख्य उद्योग है सबको अपनी अपनी हैसियत के मुताबिक काम मिल सकता है आप में कैलिबर होना चाहिए। किस्मत के भरोसे बैठने वालों के हाथ खाली ही रहते है। मेहनत का कोई पर्याय नहीं। धीरुभाई अंबानी से लेकर टाटा बिरला और अदाणी की कहानी में मेहनत का किरदार मुख्य रहा है। कोई रातों रात अरबपति नहीं बनें हिम्मत हौसला और मेहनत के बलबुते पर आगे आए है।
कुछ पाने के लिए बहुत कुछ छोड़ने की हिम्मत होनी चाहिए उसके बाद जो मिलेगा वो अनमोल होगा। तो अपनी ज़िंदगी के कुछ साल पढ़ने लिखने में बिताईये पूरी ज़िंदगी ऐशो आराम में कटेगी। हर एक के लिए कहीं न कहीं एक काम, एक कुर्सी और एक स्थान निश्चित होता है, उसे ढूँढने और पाने के लिए खुद को कुछ समय देना पड़ेगा। उस काम और कुर्सी के काबिल खुद को बनाना पड़ेगा और उसके लिए पढ़ाई बहुत मायने रखती है।
पढ़ाई और मेहनत से मुँह मोडोगे तो ज़िंदगी आपसे मुँह मोड़ लेगी। तो बच्चों उठो जागो और जब तक लक्ष्य को हासिल ना कर लो तब तक रूको नहीं। परिवार में किसी एक का उपर उठना पूरे परिवार की तरक्की होती है। पिता के कंधे से परिवार का बोझ बच्चें ही कम कर सकते है। इसलिए कुछ सालों के लिए सब कुछ छोड़ने की हिम्मत कर लीजिए और बदले में बहुत कुछ पा लीजिए।
— भावना ठाकर ‘भावु’

*भावना ठाकर

बेंगलोर