प्यार और नफ़रत
प्यार और नफ़रत
नेहा ने अपने भैया के यहाँ फोन किया. आशा के अनुरूप फोन उसकी भाभी ने ही उठाया- “नमस्ते भाभीजी, कैसी हैं आप ?”
भाभी ने शब्दों में मिश्री घोलते हुए कहा- “अच्छी हूँ नेहा. तुम कैसी हो ?”
नेहा- “मैं भी अच्छी हूँ भाभीजी, एक बात पूछनी थी आपसे, इसलिए फोन लगाया है. क्या मेरी भेजी हुई राखी आपको मिल गई हैं ?”
भाभी- ” नहीं तो, अभी तक तो नहीं मिली है.”
नेहा- “कोई बात नहीं भाभीजी, अगर कल तक नहीं मिली तो भैया को राखी बाँधने के लिए मैं खुद ही आ जाऊँगी रक्षाबंधन के दिन.”
भाभी- “हाँ-हाँ ज़रूर, मैं कल फोन कर बताती हूँ तुम्हें.”
वह सोचने लगी कि इस बार रक्षाबंधन का त्यौहार सोमवार को है, मतलब तीन दिनों की छुट्टी. यदि नेहा यहाँ आ गई तो बेकार हो जाएगी तीन दिनों की छुट्टी.
अगले दिन ही नेहा के पास भाभीजी का फोन आ गया- “नेहा, तुम्हारी भेजी हुई राखी अभी थोड़ी देर पहले ही कोरियर वाला दे गया है. अच्छा है मिल गया, वैसे तुम्हारे भैया इस फ्राईडे को कहीं टूर पर जाने की बात कह रहे थे.’’
नेहा- ‘‘ठीक है भाभीजी, अब मैं निश्चिन्त हो गई कि मेरी राखी पहुँच गई.”
नेहा ने तो भाभीजी से उस राखी के मिलने की बात कही थी, जो उसने पोस्ट ही नहीं की थी. वह तो बस ये देखना चाहती थी कि पिछले सालभर में वह कुछ बदली भी हैं या अब भी वैसी की वैसी ही हैं. अब वह भाभीजी को कैसे समझाए कि भैया टूर के बहाने अपने सभी भाई-बहनों के साथ रक्षाबंधन के दिन अपने गाँव जाने वाले हैं.
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़