बारिशें
घर किसी का यहाँ ढा रहीं बारिशें
तो किसी को यहाँ भा रहीं बारिशें
भीगकर छाँव कल थी बनाई मगर
घर के भीतर उतर आ रहीं बारिशें
आज मौसम हमारे यहाँ देखिए
शाँत परिवेश चहका रहीं बारिशें
आँच में सूख थी जो गयी कल धरा
उस धरा को भी’ नहला रहीं बारिशें
गुनगुगाता ‘शिवा’ गीत बारिश में’ यूँ
गीत मल्हार हैं गा रहीं बारिशें
— अभिषेक श्रीवास्तव “शिवा”