मुक्तक/दोहा

दोहे – तप में होता प्रताप

तप से हरदम बल मिले,मन हो जाता शांत।
बिखरे नित नव चेतना,रहे नहीं मन क्लांत।।
तप में होती दिव्यता,मिलता है आवेग।
इसमें पावनता भरी,जो बनती शुभ नेग।।
तप में संयम है भरा,सदाचार की बात।
यह रचकर नव राह को,करता जगमग रात।।
तप में है गतिशीलता,जनहितकारी सार।
बनकर के यह अस्त्र नित,मारे सभी विकार।।
तप में होता ताप है,हरता जो संताप।
इसके प्रबल प्रताप को, कौन सका है माप।।
तप की मत अवहेलना,कहते हैं यह धर्म।
रीति,नीति से हों सदा,जग में सारे कर्म।।
तप को करके संत सब,बनते सदा महान।
तप अंतर की शुद्धता, जीवन का उत्थान।।
तप निश्चित वह साधना,जिसमें संयम संग।
रचे प्रेम,करुणा,दया,परहित के नवरंग।।
तप अंतर की वंदना,तप है मंगलगान।
तप हरता है वेदना,बनकर दयानिधान।।
तप जीवन का नूर है,तप जीवन का सार।
तप तो नित अविवेक पर,करता तीखी मार।।
— प्रो (डॉ) शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल[email protected]