कहानी

कहानी – हमारा घर

सुमित्रा कपड़े धोते-धोते थक गई थी।पल भर को सुस्ताने वह कुँए की मुंडेर पर बैठ गई। तभी सुमित्रा की बहू हाथ नचाते हुए बोली-” वाह! मांजी जरा से कपड़े क्या धोयीं कि थककर बैठ गईं। अब जाइये इन कपड़ों को छत पर सूखा कर आईए। खातीं तो थाली भर भात हैं पर सारी ताकत जाने कहाँ चली जाती है?”
       सुमित्रा बहू की जली-कटी बातें सुनकर आँखों में आँसू भर कर बोली- “बहू, मुझसे छत पर चढ़ा नहीं जाता। कई दिनों से मेरे घुटने में बेहद दर्द है। शांता को कहो कि वह कपड़े सूखा दे।”
      “क्यों शांता क्यों?आप हमेशा बहाने बनातीं हैँ।आप चुपचाप जाइये और छत पर कपड़े सूखाकर कर मेरे कमरे में झाड़ू-पोंछा लगाइए।ससुर जी तो मर गए ।इस मुसीबत को हमारे मत्थे मढ गए।” बहू गुस्से से तमतमाती हुई बोली।
तभी दरवाजे पर किसी ने पुकारा-“सुमित्रा ओ सुमित्रा–।” बहू ने दरवाजे पर झांक कर देखा।कोई बजुर्ग सा व्यक्ति दरवाजे पर खड़ा था।
          “किससे मिलना है आपको?” बहू ने पूछा।
        “जी, सुमित्रा जी से।वो इसी घर में रहती हैं न? मैं उनसे मिलने आया हूँ।”बुजुर्ग व्यक्ति ने कहा।
       ” हां, यही रहती हैं पर आप हैं कौन?”बहू ने पूछा।
        “जी ,मैं उनका परिचित हूँ।” बुजुर्ग ने कहा।
         “मांजी, आपसे कोई मिलने आया है। ” बहू ने अपनी सास को आवाज देते हुए कहा।
           “मुझसे भला कौन मिलने आएगा? मायके में तो अब कोई नहीं है।” मन ही मन  बुदबुदाती हुई सुमित्रा अपनी साड़ी ठीक करती हुई दरवाजे पर आई।             आगन्तुक को देखते ही उसका हृदय धड़क उठा। उसका मुँह लाल हो गया।सांसे तेज गति से चलने लगी। वह अपने को संयत  करती हुई बोली-“आओ दिवाकर आओ न, बैठो।”        बुजुर्ग बैठक में आकर बैठ गया।
        “इतने बरसों बाद भी तुम नहीं बदले ।हां, बाल थोड़े सफेद हो गए हैं।”सुमित्रा ने कहा।
           “तुम कैसी हो सुमित्रा? तुम्हारे बारे में तुम्हारे पड़ोसी मुझे बताते रहते हैं। क्या है मैं इस मोहल्ले में आता-जाता रहता था । मेरी मौसी के बेटे की इसी मोहल्ले में किराने की दुकान है। तुम तो बिल्कुल आधी हो गई हो। पहचान ही नहीं आ रही हो। आंखों के नीचे काले-काले घेरे हो गए हैं।बीमार हो क्या?” दिवाकर ने  पूछा।
       यह सुनकर सुमित्रा सिसक पड़ी और भावावेश में दिवाकर के कंधे पर सिर रखकर रोने लगी। यह देख सुमित्रा की दोनों बहुयें वहाँ आ गईं। छोटी बहू ने कहा- “लगता है दीदी, सासु माँ का कोई पुराना यार है। तभी तो सासु माँ बेशर्मों की तरह लिपट गई।।”
           दिवाकर ने कहा- “कैसी बातें करती हो आप लोग? ये आपकी सासु माँ हैं।आप लोगों को थोड़ी तो मर्यादा का ध्यान रखना चाहिए।”
          “मर्यादा का ध्यान तो सासु माँ को रखना चाहिए।” बड़ी बहू ने कहा।
          “दिवाकर , इन्हें कुछ न कहो। रहने दो।” सुमित्रा ने कहा।
         “तुम्हारी यहां क्या दशा है। मुझसे छुपी नहीं है। तुम्हारे बेटे अपनी बीबियों के हाथों की  कठपुतलियाँ हैं। तुमने अपना जमीन जायजाद बेटों के नाम कर दिया है।अब तुम दूध में गिरी मक्खी की तरह हो। जिसे फेंक दिया जाता है।सुमित्रा तुम चुप क्यों हो बोलो न?” दिवाकर ने कहा।
सुमित्रा चुप खड़ी रही। वह याद करने लगी। पहली बार दिवाकर को देख कर उसका ह्रदय धड़का था। पहली बार वह दिवाकर को देखकर शरमाई थी।उसकी सहेलियों ने तब उसे खूब छेड़ा था। उनकी गली में रहने को आये दिवाकर का घर उसके घर के ठीक सामने था।आते-जाते दिवाकर सुमित्रा को प्यार भरी नजरों से देखा करता था। धीरे-धीरे दोनों आपस मे घुल मिल गए। प्रेम परवान चढ़ चुका था। प्यार के कसमें -वादे होने लगे थे कि सुमित्रा के घरवालों ने सुमित्रा का रिश्ता पक्का कर दिया। लड़का सुमित्रा से दुगनी उम्र का था पर था धनवान। सुमित्रा ने इसका विरोध भी  किया पर घरवालों ने उसकी एक न सुनी। उसकी जबरजस्ती शादी कर दी गई। रोती बिलखती सुमित्रा अपने  ससुराल आ गई पर उसका ह्रदय तो दिवाकर के पास ही रह गया। वह समाज परिवार की मर्यादा में बंधकर रह गई।
        दोगुनी उम्र का पति ऊपर से शराबी जुआरी। सुमित्रा के दुखों का ठिकाना न रहा। जल्द उसे पता चल गया कि उनका परिवार कर्ज में लदा हुआ है। शराबी पति का लिवर खराब हो गया । वह ऐसे ही परेशानी में जी रही थी कि पति की मृत्यु हो गई। अब  वह बेटे-बहुओं की प्रताड़ना झेल रही थी।
        अचानक वह अपने आँसू पोछती हुई  रसोईघर में चाय बनाने लगी कि  बहुओं ने कहा-” यहां एरे -गैरों के लिए चाय नहीं बनेगी ।”
         यह सुनकर सुमित्रा ने कहा-“भूलो मत कि ये मेरा घर है।”
        “था यह आपका घर पर अब ये घर हमारा है।अब इस घर पर आपका कोई अधिकार नहीं है क्योंकि घर के सारे कागजात पर हमारा नाम है।” यह सुनकर सुमित्रा भूमि पर सिर पकड़कर बैठ गई।
         दिवाकर ने सुमित्रा को उठाते हुए कहा- “चलो सुमित्रा यहां से।यहां तुम्हारी कोई कद्र नहीं है। यहाँ रहकर तुम कब तक यातना सहोगी? चलो तुम  मेरे साथ रहना।”
          सुमित्रा ने आँसू पोंछते हुए कहा- “नहीं दिवाकर,सारी उम्र बीत गई है।अब जिंदगी के कुछ पल ही शेष रह गए हैं।अब मैं मर्यादा नहीं तोड़ सकती पर एक बात बताओ तुम अपने साथ रहने को बोल रहे हो। तुम्हारे बहू-बेटे  क्या मुझे रहने देंगे?”
        दिवाकर ने कहा-“नहीं  मैं उनके साथ नहीं रहता।”
      “कहाँ रहते हो?” सुमित्रा ने पूछा।
       “हमारा घर” दिवाकर ने मुस्कुराते हुए कहा।
      ” हमारा घर ?” सुमित्रा ने आश्चर्य से पूछा।
       “हां, हमारा घर वृद्धाश्रम।”  दिवाकर ने कहा।
      यह सुनकर सुमित्रा स्तब्ध रह गई।
— डॉ. शैल चन्द्रा

*डॉ. शैल चन्द्रा

सम्प्रति प्राचार्य, शासकीय उच्च माध्यमिक शाला, टांगापानी, तहसील-नगरी, छत्तीसगढ़ रावण भाठा, नगरी जिला- धमतरी छत्तीसगढ़ मो नम्बर-9977834645 email- [email protected]