लघुकथा

संगठन की शक्ति

कल हमारे प्रिय पोते आरोह कुमार तिवानी का जन्मदिन था. स्वभावतः सुबह नाश्ते में कुछ मीठा बनना था. हमने सबकी पसंद के मीठे पोहे बनाए. पोहों के लिए चीनी निकालते समय चीनी के कुछ दाने बिखर गए. हमने तुरंत समेट लिए. उसके बाद हमेशा की तरह हमारी घरेलू-सहायिका ने साबुन-पानी से स्लैब धो-पोंछ दिया. फिर भी सम्भवतः चीनी का एकाध दाना कहीं कोने में रह गया होगा!
हमने लंच के लिए सांभर-चावल बनाए, चटखारे लेकर सबने बड़े मजे से खाए. बचे हुए चावल हमने कुकर में ही अच्छी तरह ढककर रहने दिए.
पता नहीं कैसे किसी चींटी को चीनी के दाने की भनक पड़ गई. दावत के लिए उसने अपने पूरे मंच को आमंत्रित कर दिया. अब एकाध दाने से कितनों का पेट भरता! रात को हमने गर्म करने के लिए चावल का कुकर उठाया, तो उसमें चींटियों का झुंड देखकर हैरान हो गए. पहली बार ऐसा हुआ था. तभी पास पड़ी एक चिट पर नजर पड़ी, लिखा था-

संगठन की शक्ति
संगठन में –
शोषण नहीं, पोषण होता है.
आग्रह नहीं, आदर होता है.
संपर्क नहीं, संबंध होता है.
अर्पण नहीं, समर्पण होता है.
‘मैं’ नहीं ‘हम’ होता है.
सादर- चींटियों का परिवार.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244