हे मानव तू क्यों करता है अभिमान
हे मानव तू क्यों करता है अभिमान
धरा पर सब दो दिन के मेहमान,
क्या लेकर आया था, क्या ले जायेगा
सब कुछ तेरा यही रह जायेगा।
तेरा झूट का बांधा हुआ पुलिन्दा
जिस पर तू घमंड करता है,
निकल जायेगी तेरी सारी अकड़
मिट जायेगा तेरा सारा अभिमान।
हे मानव सतगुरु के चरणों में जा
गुरु ही इस जग का तारणहार है,
गुरु दिखाएं सत्य की राह
काम, क्रोध लोभ मोह मिट जायेगा।
गुरु ही सहारा होता इस दुनिया में
जो इस भव सागर पार लगाए,
जीवन में जो भी सच्ची भक्ति करता
उसका जीवन अमृत तुल्य हो जाता।
— कालिका प्रसाद सेमवाल