कविता

कविता

शायद मुझे नहीं करना था फिर भी किये जा रहा हूँ,
दुसरों को खुश करने के चक्कर में

खुद को दुखी किये जा रहा हूँ।
खुद को खुद से दूर किये जा रहा हूँ,
फिर भी अपने लिए नहीं औरों के लिए जी ये जा रहा हूँ।
औरों को खुश करने के चक्कर में,
खुद को झुठी तस्सली दिये जा रहा हूँ,
दुनिया के बनावटी दस्तूर में उलझे जा रहा हूँ।
भागती जिंदगी के रेस में, मैं भी भागे जा रहा हूँ,
नहीं चाहते हुए भी ये सब किये जा रहा हूँ।
थक गया हूँ जीवन के इस भागती रेस से,
बनावटी और मतलबी रिश्ते- नातों के भेष से।
अब अपने लिए जीना है जरूरी,
चाहे रिश्ते नातों से रहे नजदीकी या दूरी।
— मृदुल शरण