गीत/नवगीत

अब फरिस्तों का कोई सहारा नहीं है

झलक एक देकर खरीद ली आंखे
इन्हें और कुछ अब गवांरा नहीं है
चले उनकी जानिब किसी रोज थे
अब क़दमों पे जोर हमारा नहीं है

जो बने थे हकीम वो रोग देने लगे हैं
दिखाके सूकूँ वो चैन भी लेने लगे हैं
नाखुुदा अब नहीं मिलते मझधार में
मुझे दिखता अब कोई किनारा नहीं है

नजर को चेताया है ख्वाबों की दुनियाँ
न तू अब टहल है हिज़ाबों की दुनियाँ
कई ‘राज’ सागर में दफ़न हो चुके हैं
अब फरिस्तों का कोई सहारा नहीं है

कहा बेचैन को चैन अब मिल जायेगा
अब फकत ओ किसी रैन मिल जायेगा
फिरते जो यहाँ बदन पे सितारे लिए
इनका! निशा मे कोई सहारा नहीं है

— राजकुमार तिवारी ‘राज’

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782