हास्य व्यंग्य

धन्यवाद ज्ञापन

अभी एक साया जाने कहां सेटहलते हुए मेरे पास आकर बोला….हे प्रभु! मुझे पता चला है कि आजआपका शासकीय जन्मदिन हैइस उपलक्ष्य में काव्य गोष्ठी भी हो रही हैतो हे पूज्यवर मेरा अनुरोध हैबस आप इसे स्वीकार करो,नाम में भला क्या रखा हैमेरा नाम पर्दे के पीछे छिपा लो।नहीं तो आज  की गोष्ठी मेंउथल पुथल मच जायेगा,आभार धन्यवाद लेने के लिएफिर यहां कोई नहीं रहेगा। सब पटल छोड़ भाग जायेंगेआपको देने के लिए लाये होंगेबधाइयां, शुभकामनाएं,उपहार, गुलदस्ता वापसी में अपने साथ लिए जाएंगे।पर मेरी बड़ी इच्छा है किमैं अनाम बनकर ही सहीइस काव्य गोष्ठी का हिस्सा बनूंसबको जी भर कर सूनूं।मुझे कवि बनने का शौक नहींबस कविता सुनने का शौक हैमुख्य अतिथि, अध्यक्ष से मुझे कोई मतलब नहींबस धन्यवाद ज्ञापन का भरपूर लोभ है।मैं चाहता हूं आपकी जगहमैं सबका धन्यवाद ज्ञापन करुं,आपके जन्मदिन पर मैं भीअपने हुनर का प्रदर्शन करूं।अब तक नहीं किया तो क्या हुआआपके जन्मदिन विशेष परकम से कम श्री गणेश तो करूं।आप सबकी बधाइयां शुभकामनाएं संभालिएआपकी जगह मैं धन्यवाद ज्ञापन कर दूंगा।जन्मदिन पर मेरा यह अनुरोध यदि आप स्वीकार कर लेंगे तो मुझ पर आपका बड़ा एहसान मानूंगा,विश्वास कीजिए अपना नाम तोमेरा नाम कोई जान ही नहीं पायेगाक्योंकि आपकिसी को बताएंगे नहींऔर मैं भी नहीं बताऊंगाखुशी के मौके पर अव्यवस्था बिल्कुल नहीं फैलाऊंगा।जन्मदिन की इस काव्य गोष्ठी कोनया आयाम दे जाऊंगा,अंत में आपका आशीर्वाद लेकरसुनी हुई कविताओं की पंक्तियां गुनगुनाते हुएकार्यक्रम की संपन्नता के साथ हीचुपचाप वापस लौट जाऊंगा,फिर अगली काव्य गोष्ठी में बिना बुलाए हाजिर हो जाऊंगा।

*सुधीर श्रीवास्तव

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