आ गई जुलाई
जून विदा आ गई जुलाई।
ऋतुओं की रानी अब आई।।
नहीं धूप लू गरम हवाएँ,
हुई तपन की पूर्ण विदाई।
रिमझीम -रिमझिम बूँदें झरतीं,
दीवारों पर जमती काई।
हैं प्रसन्न नर -नारी हम सब,
पशु -पक्षी में खुशियाँ छाई।
नदियाँ नाले भर – भर चलते,
गड्ढे भरे भरी सब खाई।
हरे – हरे अंकुर उग आए,
शुष्क पेड़ लतिका हरिआई।
इधर बोलते मोर मनोहर,
उधर रागिनी कोयल गाई।
‘शुभम्’ सभी ने हर्ष मनाया,
कहते सब शुभ वर्षा आई।