हास्य व्यंग्य

नैतिकता ,कानून और ‘रिश्तात्त्व में रहन’

जैसा भी हो अपने देश के कानूनों को मानना,उनका सम्मान करना और उनकी बनाई गई लकीर पर फ़क़ीर बनकर कर फक्र करते हुए उनका अनुपालन करना हमें देश का सच्चा नागरिक बनाता है।भले ही वे कानून समाज,नैतिकता और एक सत्व प्रधान मानवता के कितने ही विरुद्ध क्यों न हों! कौन नहीं जानता कि कानून के दरवाजे पर ‘न्याय की तराजू’ हाथ में टाँगे हुए क़ानून की प्रतीक नारी की आँखों पर काली पट्टी बँधी हुई है। इसका सीधा – सा अर्थ स्वतः समझने योग्य है कि कानून अंधा होता है।अर्थात वह सही और गलत को प्रत्यक्षत:नहीं देख सकता।वह बस कानों से सुनकर फैसला करता है, सत्य,असत्य, नैतिकता, सामाजिकता आदि से उसका दूर – दूर तक भी कोई सम्बंध नहीं है।

आज मेरा मंतव्य आज से पैंतालीस वर्ष पूर्व 1978 ई.में बने हुए राष्ट्रीय क़ानून ‘लिव इन रिलेशनशिप’ पर विचार -विमर्श करने का है।इस कानून को मान्यता माननीय सर्वोच्च न्यायालय के विद्वान न्यायाधीशों द्वारा प्रदान की गई। एक ओर वे ‘ माननीय’ हैं (तो मानने ही पड़ेंगे),दूसरी ओर ‘विद्वान ‘भी हैं (तो उनकी सर्वोच्च विद्वत्ता को चुनौती भी नहीं दी जा सकती); ऐसी स्थिति में भला देश के इस ‘ पवित्र कानून’ पर जिंदा अँगुली तो क्या एक मरा हुआ तिनका भी नहीं उठाया जा सकता। देश का पवित्र कानून है;मानना ही पड़ेगा।

कानून कहता है कि कोई भी अविवाहित वयस्क बाला यदि किसी अविवाहित वयस्क बालक के साथ अपना घर,माँ, बाप और भाई बहनों से भरे – पूरे परिवार को तिलांजलि देकर किसी होटल, किराए के मकान या अन्यत्र रहना चाहती है ,तो उसे उसके माँ ,बाप या अन्य कोई रोक नहीं सकता। वहाँ पर वे दोनों वयस्क कुछ भी करें, कोई -टोक नहीं है। यहाँ तक कि वे एक विवाहित दंपति की तरह बच्चे भी पैदा करें तो भी क़ानून की आँख में खटकने वाली कोई बात नहीं होगी। अरे भई ! बात खटकेगी तो तब जब कानून की आँखें हों? वह तो पहले से ही गांधारी बना बैठा है।उसे क्या? अब वे दोनों चाहे सुहाग रात मनाएं या बच्चे पैदा करें।नियम – कानून भी तो उसी ने बनाया है! नैतिकता, समाज,धर्म,वर्ण,जाति सब को भाड़ में झोंक कर मनमानी करने का नाम ही तो ‘लिव इन रिलेशनशिप’ है। शायद इसी को समाजवाद भी कहते होंगे। लाचार माता -पिता फड़फड़ाते रहें तो फड़फड़ाते रहें। उन्हें अपनी मनमानी करने से कोई भी नहीं रोक सकता।

इस ‘लिव इन रिलेशनशिप’ से दिल – उछालों की तो होली- दीवाली हो गई। देश के सर्वोच्च कानून ने इसकी बाइज्जत मान्यता दे दी। समाज ,दुनिया ,नैतिकता यहाँ तक कि उनके माँ -बाप उनके ठेंगे पर ! आजकल ठेंगा दिखाना किसी को चिढ़ाने के अर्थ में नहीं है ,वरन वह ‘पसंदगी ‘का प्रतीक है। नहीं मानें तो व्हाट्सएप के इमोजी भंडार में नज़र घुमा कर देख लीजिए।जिन परिवारों के युवा औऱ युवतियाँ इस प्रकार के संबंधों की शोभा बढ़ाते हुए देश के सर्वोच्च कानून के प्रबल पालक और समर्थक बने हुए दायित्वविहीन जीवन जी रहे हैं ,यदि देश के सर्वेक्षण के आधार पर उनके माता -पिताओं से पूछा जा जाए ,तो क्या वे इसका समर्थन कर सकेंगे? वे सम्मान से सिर ऊँचा करके विमर्श के उन्मुख होने की स्थिति में होंगे? संभवतः नहीं।

समाज कहाँ जा रहा है? कूकर – शूकरों जैसा जीवन जीता हुआ आज का अत्याधुनिक युवा वर्ग अंततः देश और समाज को कहाँ ले जा रहा है। सुना है कि महानगरों में ऐसे हजारों अविवाहित जोड़े ‘लिव इन रिलेशनशिप’ में अपने दरबों में अंडे दे रहे हैं।परिणाम भी आ रहे हैं। किसी अत्याधुनिकता की देह किसी फ्रिज़ में ,अटेची में ,कुकर में या बोरों में खंड- खण्ड में विभाजित की हुई टीवी ,अखबारों और सोशल मीडिया पर आए दिन दिख ही जाती है। कानून भला क्यों देखे? वह तो पहले से ही गंधारीत्व धारण किए हुए शांत है।वह किसी सामाजिक नीति रीति का ठेकेदार थोड़े ही है? उसे पुनर्विचार की भी आवश्यकता नहीं है।

राम,कृष्ण ,महावीर, स्वामी विवेकानंद ,स्वामी रामकृष्ण परम हंस के आदर्श औऱ नैतिक मानदंड झूठे पड़ गए हैं।बीस प्रतिशत पारदर्शी पहनावे में देह दर्शन कराना ही नई सभ्यता है।आप किसी भी नारी को इसके लिए रोक टोक नहीं सकते। वह देवी जो है। पूज्या है। सम्माननीया है।उसमें सरस्वती, लक्ष्मी औऱ दुर्गा का वास है। न ! न!! आप उससे कुछ नहीं कह सकते।वह कुछ भी करें। सब जायज है। यदि आपने दुर्भाग्य से कुछ भी कह दिया तो चरित्रहीनता का कीचड़ आपके ऊपर ही आएगा।इसलिए कृपया अपनी कुशल चाहें तो मुँह पर मजबूत – सी मुख चोली धारण किए रहें।

आज का युवा वर्ग सभ्यता की पराकाष्ठा को पार कर गया है।करेला और नीम चढ़ा। एक ओर तो वैसे ही वे घर से भाग – भाग कर ‘भागवान’ बने हुए थे, उधर से हमारे सर्वोच्च कानून ने भी पक्का कानून बना दिया ,बहुत अच्छे! बहुत अच्छे!!ऐसे ही किए जाओ और इन सठियाये हुए बूढ़े -बुढियों को लात मारकर अपना आशियाना अलग ही बसाओ। तभी तो अति आधुनिक कहलाओ।जब तक जी न भरे तब तक ‘लिव इन ‘के अनुभव पाओ। जब भर जाए एक दूसरे से जी, तब मारो दो लात या टुकड़े -टुकड़े कर जाओ। देह ही तो सब कुछ है। उसे खूब चमकाओ।नैतिकता को झोंको भाड़ में औऱ देहानन्द में रम जाओ।

— डॉ.भगवत स्वरूप ‘शुभम्’

*डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

पिता: श्री मोहर सिंह माँ: श्रीमती द्रोपदी देवी जन्मतिथि: 14 जुलाई 1952 कर्तित्व: श्रीलोकचरित मानस (व्यंग्य काव्य), बोलते आंसू (खंड काव्य), स्वाभायिनी (गजल संग्रह), नागार्जुन के उपन्यासों में आंचलिक तत्व (शोध संग्रह), ताजमहल (खंड काव्य), गजल (मनोवैज्ञानिक उपन्यास), सारी तो सारी गई (हास्य व्यंग्य काव्य), रसराज (गजल संग्रह), फिर बहे आंसू (खंड काव्य), तपस्वी बुद्ध (महाकाव्य) सम्मान/पुरुस्कार व अलंकरण: 'कादम्बिनी' में आयोजित समस्या-पूर्ति प्रतियोगिता में प्रथम पुरुस्कार (1999), सहस्राब्दी विश्व हिंदी सम्मलेन, नयी दिल्ली में 'राष्ट्रीय हिंदी सेवी सहस्राब्दी साम्मन' से अलंकृत (14 - 23 सितंबर 2000) , जैमिनी अकादमी पानीपत (हरियाणा) द्वारा पद्मश्री 'डॉ लक्ष्मीनारायण दुबे स्मृति साम्मन' से विभूषित (04 सितम्बर 2001) , यूनाइटेड राइटर्स एसोसिएशन, चेन्नई द्वारा ' यू. डब्ल्यू ए लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड' से सम्मानित (2003) जीवनी- प्रकाशन: कवि, लेखक तथा शिक्षाविद के रूप में देश-विदेश की डायरेक्ट्रीज में जीवनी प्रकाशित : - 1.2.Asia Pacific –Who’s Who (3,4), 3.4. Asian /American Who’s Who(Vol.2,3), 5.Biography Today (Vol.2), 6. Eminent Personalities of India, 7. Contemporary Who’s Who: 2002/2003. Published by The American Biographical Research Institute 5126, Bur Oak Circle, Raleigh North Carolina, U.S.A., 8. Reference India (Vol.1) , 9. Indo Asian Who’s Who(Vol.2), 10. Reference Asia (Vol.1), 11. Biography International (Vol.6). फैलोशिप: 1. Fellow of United Writers Association of India, Chennai ( FUWAI) 2. Fellow of International Biographical Research Foundation, Nagpur (FIBR) सम्प्रति: प्राचार्य (से. नि.), राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय, सिरसागंज (फ़िरोज़ाबाद). कवि, कथाकार, लेखक व विचारक मोबाइल: 9568481040