बरसाने की राधिका
बरसाने की राधिका, नंदगाँव के श्याम।
मेरे मन में आ बसो, करता ‘शुभम्’ प्रणाम।।
उमड़ रहे घन व्योम में,गरज-गरज चहुँ ओर,
चपला चमके डर लगे,दृश्य हरित अभिराम।
पिया गए परदेश को,करूँ रात – दिन बाट,
भीग-भीग चोली कसे, नित्य सताए काम।
जोत रहे हैं खेत को,कृषक सभी दिन – रात,
बंजर ये धरती पड़ी,जपती पिय को वाम।
जोते बिना न भूमि में, बोएं कैसे बीज,
भूमिपुत्र लौटे नहीं, भूले कहाँ ललाम।
ज्यों-ज्यों झरते बिंदु झर, त्यों-त्यों बढ़ती आग
सजन कहाँ भूले डगर,शून्य देह का धाम।
‘शुभम्’ इधर मधुमास है, फूले तन में फूल,
बादल बन बरसो कहाँ, सीता के प्रभु राम।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम्’