गीतिका/ग़ज़ल

सावन

धरा को नेह जल बौछार से नहला गया सावन |
नयन में स्वप्न भर सांसो को फिर महका गया सावन |

घटा रिमझिम बरसती जब ये तन-मन भीग जाता हैं,
ह्रदय में प्रेम की बंसी बजाता आ गया सावन |

नजारे हो गए रंगी धरा धानी हुई सारी,
जमीं से आसमां तक नूर फिर बिखरा गया सावन |

लिए सौगात राखी नेह बहना प्यार दर्शाए ,
कलाई प्रीत की डोरी से फिर बंधवा गया सावन |

पड़े बागों में झूले झूल कजरी गा रही सखियां ,
तराने गूंजते चहुँ दिश फिज़ा में छा गया सावन |

विचारों की कलुषता दूर हो पावन महीने में,
ये भोले नाथ की भक्ती बढ़ा
हर्षा गया सावन |

चढ़ाकर जल करें अभिषेक शिव का नाम जपते जो,
उमापति नाथ का वरदान अक्षय पा गया सावन |

सदा शिव को मनाने का “मृदुल” शिवमास ये अनुपम,
ह्रदय में भाव भक्ती का बढ़ा सरसा गया सावन |
— मंजूषा श्रीवास्तव “मृदुल”

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016