गीत/नवगीत

हे डमरूधर हे शशिशेखर

हे डमरु धर हे शशि शेखर,हे गंगाधर हे अभयंकर |
पीकर के गरल सरस करते,जग-जीवन को जड़ चेतन को |

तर जाते हैं पापी सारे,तेरी शरणागत में आकर |
कट जाते सारे पाप-साप,तेरी करुणा का जल पाकर |
हे शिव शंभू भोले दानी,हरते हों पाप ताप जन का,
बिगड़ी को सदा बनाते हो,हे नीलकंठ हे नागेश्वर |
हे डमरूधर हे शशि शेखर हे गंगाधर ——

मन से जो जलाभिषेक करें,संग बेल के पात चढ़ाते हैं |
तर जाते हैं प्राणी भव से,जो शरण तिहारी पाते हैं |
हे आशुतोष हे वरदानी ,हे महाकालऔघड़ दानी |
हे निर्विकार ओंकार हरे,दुख क्लेश हरो हे सर्वेश्वर |
हे डमरुधर हे शशिशेखर हे गंगाधर ………

हे भीमेश्वर हे त्रिपुरारी,निष्काम जगतपति दुखहारी |
कर्ता-धर्ता भरता हरता,हे उमानाथ भवभय हारी |
हे चंद्रमौलि हे जगदीश्वर,भव बाधाएं संताप हरो,
हे आशुतोष
औघड़ दानी, सब दूर तमस अभिशाप करो|
हे सोमनाथ मलिकाअर्जुन हे त्रयम्बकेश्वर रामेश्वर |
हे डमरूधर हे शशिशेखर हे गंगाधर हे ……
©®मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’


*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016