हे डमरूधर हे शशिशेखर
हे डमरु धर हे शशि शेखर,हे गंगाधर हे अभयंकर |
पीकर के गरल सरस करते,जग-जीवन को जड़ चेतन को |
तर जाते हैं पापी सारे,तेरी शरणागत में आकर |
कट जाते सारे पाप-साप,तेरी करुणा का जल पाकर |
हे शिव शंभू भोले दानी,हरते हों पाप ताप जन का,
बिगड़ी को सदा बनाते हो,हे नीलकंठ हे नागेश्वर |
हे डमरूधर हे शशि शेखर हे गंगाधर ——
मन से जो जलाभिषेक करें,संग बेल के पात चढ़ाते हैं |
तर जाते हैं प्राणी भव से,जो शरण तिहारी पाते हैं |
हे आशुतोष हे वरदानी ,हे महाकालऔघड़ दानी |
हे निर्विकार ओंकार हरे,दुख क्लेश हरो हे सर्वेश्वर |
हे डमरुधर हे शशिशेखर हे गंगाधर ………
हे भीमेश्वर हे त्रिपुरारी,निष्काम जगतपति दुखहारी |
कर्ता-धर्ता भरता हरता,हे उमानाथ भवभय हारी |
हे चंद्रमौलि हे जगदीश्वर,भव बाधाएं संताप हरो,
हे आशुतोष
औघड़ दानी, सब दूर तमस अभिशाप करो|
हे सोमनाथ मलिकाअर्जुन हे त्रयम्बकेश्वर रामेश्वर |
हे डमरूधर हे शशिशेखर हे गंगाधर हे ……
©®मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’