ग़ज़ल
देख लंबे सफ़र नहीं होते
दूर हम तो मगर नहीं होते
थी मुहब्बत चले इसी ख़ातिर
हम चले इस डगर नहीं होते
ग़म भरी रात रोज़ काटी है
बावफ़ा बेसबर नहीं होते
नींद से कीं गुज़ारिशें हमने
जागने पर क़हर नहीं होते
ग़ैर तो आ नहीं गया देखें
देख डाले नज़र नहीं होते
भेद आते कभी न दिलों में जो
तो बड़े ये गदर नहीं होते
छोड़ देते सभी वही राहें
साथ चलते अगर नहीं होते
जो मुहब्बत न की कभी होती
तो भटकते बेदर नहीं होते
जो बसाते न घर हमीं मिलकर
बस गये ये नगर नहीं होते
— रवि रश्मि ‘अनुभूति