सामाजिक

धार्मिक स्थलों की सफाई में असाधारण प्रगति

ऋषि पतंजली ने जीवन को आनन्दमय बनाकर समाधि अर्थात मोक्ष तक पहुंचने के लिये पांच ‘यम‘- सत्य, अहिंसा, चोरी न करना, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह-उतना ही पास रखना जितना चाहिये अर्थात जरूरत ये अधिक संग्रह न करना व पांच ‘नियम‘- शौच, सन्तोष, तप, स्वाध्याय व ईश्वर को सर्मपण बतायें हैं
इन में शौच भी एक है। शौच का अर्थ है स्वच्छता न केवल अपनी स्वच्छता बल्कि आसपास के वातावरण की स्वच्छता भी। इस में कोई संदेह नहीं कि हम भारत के लोगों के लिए धर्म, उसका चाहे कोई भी स्वरूप हो, जीवन का मुख्य विषय रहा है। परन्तु स्वच्छता, खासकर आसपास के वातावरण की स्वच्छता का स्थान बिल्कुल नहीं था। हमारे धार्मिक स्थल अक्सर गन्दे ही हुआ करते थे। यह महात्मा गान्धी के जीवन की निम्न घटना पढने के बाद यह स्पष्ट है।
1903 में महात्मा गाान्धी पहली बार बनारस जिसे काशी कहा जाता है गये। हिन्दू होने के कारण यह स्वाभाविक था कि वह काशी विश्वनाथ के मन्दिर भी गये। जो उन्होने वहां देखा उससे प्रभावित होना तो दूर की बात है उन के मन को बहुत दुःख हुआ। चारों और मक्खियों की भरमार थी। वहां पर इतना शोर था जो कि असहनीय था। जबकि भगवान के घर में शान्त वातावरण का होना आवश्यक है। वहां सब इसके विपरीत था। वह मन्दिर के अन्दर गये तो सड़े हुये फूलों की बदबू के कारण उन्हे वहां खड़ा होना मुश्किल हो रहा था। फर्श जगह जगह से टूटा हुआ था। ़वह मन्दिर के चारों और घूमे, पर उन्हें नहीं लगा कि ऐसे स्थान पर भगवान रहता होगा या फिर ईश्वर के दर्शन हो सकतें हैं। वह बहुत निराश होकर वहां से लौटे।
इसके ठीक 13 साल बाद फिर महात्मा गान्धी को बनारस जाने का अवसर मिला। उन्हें बनारस हिन्दु विश्वविद्यालय के उदघाटन समारोह में बुलाया हुआ था। कई राजा महाराजा और कांग्रेसी नेता वहां माजूद थे। पर गाांधी जी को उस समय अधिक लोग न तो जानते थे और न ही भारतीय राजनीति में उनका वह सर्वोच स्थान था जो कि बाद में बना। गांधंी जी उस से एक दिन पहले ही काशी विश्वनाथ मन्दिर जाकर आये थे और वहां की हालत वैसे ही थी जो उन्होने 13 साल पहले देखी थी।
मुख्य वक्ताओं के बोलने के बाद गांधंी जी की बारी आई। जो वे बोले उसका सारांश इस प्रकार है- ‘‘ज़ाहिर है आपने इस उदघाटन सामारोह को आलीशान बनाने में बहुत धन और पैसा खर्च किया है। यह हिन्दुओं के लिये गौरव की बात है। मैं हिन्दु होने के नाते आपसे पूछता हूं कि क्या आपने कभी काशी विश्वनाथ मन्दिर जाकर वहां का हाल देखा है। यदि कोई व्यक्ति बाहर देश से वहां जाये तो वह हम हिन्दुओं के बारे में क्या राये बनायेगा? यदि वह हम को धृणित होकर देखे तो मैं नहीं समझता उसकी कोई गलती होगी। हर जगह गन्दगी, बदबू, मक्खियां और तंग गलियां देखकर मैं नहीं समझता कि कोई विदेशी हमें स्वराज के योग्य पायेगा, जिसके लिये हम संघर्ष में लगे हुये हैं। जो व्यक्ति अपने भगवान के घर को इतना गन्दा रखते हो मैं नहीं समझता वह अपने देश को अच्छा रख सकते है।
यह पहली वार थी कि किसी नेता ने ऐसी स्पष्ट बात की हो। वहो पर माजूद सभी नेता गाधी जी से खफा थे और नतीजा यह हुआ कि मदन मोहन मालविय और ऐनी बसन्त ने उन्हे आगे नहीं बोलने दिया और बिठा दिया। जो राजे महाराजा वहां आये वे सब गांधीं जी की बात से इतना क्षुव्ध हुये कि उठ कर चल दिये।
2014 में जब श्री नरेन्द्र मोदी प्रधानमन्त्री अने तब इस बात को ठीक 100 वर्ष हो गये थें। इस बीच यहां से अंग्रेज़ चले गये, महात्मा गाधीं जिन्हंे बापू कहा जाता है और जिन के नाम पर भारत की मुश्य राजनैतिक पार्टी 60 वर्ष तक षासन करती रही, भी नहीं रहे। हमारे देश के शासन की डोर ं अधिकतर ऐसे व्यक्तियों के हाथ में रही जो विदेशों में रहे या वहां से शिक्षा प्राप्त कर के आये, जहां कि अपनी और वातावरण की सफाई को बहुत महत्च दिया जाता है। पर किसी ने भी धार्मिक स्थलों पर सफाई के मुददे को नहीं छूआा। परिणाम काशी विश्वनाथ मन्दिर और अधिकतर दूसरे हिन्दु मन्दिरों की सफाई के बारे में हालत वैसी ही रही जैसे 100 वर्ष पहले थी। नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमन्त्री बनने के बाद बहुत सही कहा कि हमारे देश को मन्दिर नहीं शौचालय चाहिय। उन्होने सफाई के क्ष्ेत्रा में अभूतपूर्व कार्य किसा व करने की प्रेरणा दी। परिणाम बस के सामने हैं। आज काशी विश्वनाथ मन्दिर ही नहीं अपितु हिन्दु धर्म से जुड़े मन्दिरों में सफााई के कारण नक्शा ही बदल गया है।
परन्तु इस श्रेत्र में अभी भी बहुत कुछ करने को है। राजनितिज्ञों ने तो दिशा दे दी व अपना काम कर दिया है परन्तु हमारे धर्माचायों को बहुत कुछ करना है। बजाये इसके के महा आरती में अगुआ बनें, यज्ञ का ब्रहमा बनें, सब से पैरों को हाथ लगवायें, आर्शीवाद दे व दक्षिणा इकटठी करें, उन्हे हाथ में झाड़ू लेकर सफाई को पहल देनी होगी। अगर महात्मा गांधी आश्रमों में झाड़ू लेकर पखाना साफ कर सकते हैं तो वे क्यों नहीं। अगर प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी झाड़ू लेकर अक्सर सफाई करते हैं तो वे क्यों नहीं? े उन्हें धार्मिक गुरू कहलाने का अधिकार तभी होगा जब वे सफााई करने व करवाने में ओं होंगें। जब वह सफाई अभियान में आगे होंगे तो चेले और श्रधालू स्वयं ही सफाई में लग जायेंगे। किसी को कहने की आवश्यकता नहीं होगी।
हमारे देश से सटा हुआ, हमारा एंेक पड़ोसी देश श्री लकां है। आज से कुछ वर्ष पहले मुझे वहां जाने का अवसर मिला। जिस बात ने मेरा मन जीत लीया बह थी साफ सफाई व वहां के लोगों का सफाई को महत्व। मैं हैरान इस बात से थी कि श्री लंका वैसे ही है जैसे कि हमारे देश का कोई दूसरा प्रान्त, यूं कहे बंगाल, फिर साफ सफाई व लोगों की साफ सफाई को लेकर आदतों में इतना बड़ा अन्तर क्यो?ें
20 दिनो के दौरान मैने घरों , मन्दिरों, दफतरो , समुदर के तटों, सड़को व पार्क आदि में जो देखा व जिसका सफाई व सभ्यता से सीधा सम्बन्ध है, वह ब्योरा इस प्रकार है,
मैने बोद्ध बिहारों में क्या देखा कि सभी भिक्षु सुवहः 4 बजे उठ कर सीधा झाड़़ू व पानी की पाईप लेकर सफाई मे लग जाते हैं। मज़े की बात यह है कि बोद्ध बिहार का मुखिया जो की सब से बड़ा भिक्षु होता है सब से आगे होता है और दो घटें यह काम चलता है। जिस दौरान बाग बगीचों को भी पानी दिया जाता है। यानी कि भक्ति बाद मे, सफाई पहले। यही नहीं, दिन में दो तीन बार भिक्षु ही साफ सफाई करते हैं, कोई बाहर से सफाई करने नहीं आता। अब एक नज़़र दोड़ाऐं अपने धार्मिक स्थलों पर। आप यह सोच भी नहीं सकते कि हमारा धार्मिक मुखिया झाड़ू को हाथ लगायेगा। उसका काम तो महा आरती करना, यज्ञ का ब्रहमा बनना, सब से पैरों को हाथ लगवाना, आर्शीवाद देना व दक्षिणा इकटठी करना है।
कोलम्बो में मुझे एक मित्र के धर भी रहने का अवसर मिला क्या देखती हूं कि सारा परिवार सुवहः 5 बजे उठ कर अपना- अपना झाड़ू लेकर सारा परिवार सफाई में लग गया। यही नहीं अपने धर के बाहर की सफाई भी उंचे वाला झाड़ू लेकर ख्ुाद करते थे। ंस्थानीय प्रशासन की गाड़ी निश्चित समय पर आती थी और वे अपना व आसपास का कूड़ा उस में डाल देते। अनुराधापुरम में मैं जिस होटल में रहे वहां होटल का मालिक भी साथ लगे अपार्टमैंट में रहता था। वही सब वहां देखने को मिला। सुवहः होते ही अपना- अपना झाड़ू लेकर सारा परिवार सफाई में लग गया। बातचीत करने पर मालुम हुआ कि श्री लंका में सफाई करने वाले नहीं होते, सभी को घरों की सफाई अपने आप करनी होती है।
एक बात निश्चित है जब सफाई को धर्म का मुख्य अंग बनाकर जब हमारे धर्म गुरू पहल करेंगे तो सारे देश का नक्शो बदल जायेगा। पर कुछ हमें भी करना होगा हम यह मानकर न चलेैंं-हमारा काम है गंद डालना, उठाना दूसरे का काम हैं। इसके स्थान पर यह यह नियम बनायें कि अगर मैं गन्दगी दालूंगा तो उठाउंगा भी।
सफाई एक ऐसा विषय है जहां आदेश से नहीं आपका अपना आचरण ही काम कर सकता है
यदि आप यह सोचें की सफाई के मामले में आपका आदेश काम कर जायेगा तो आप गलती में हैं। हो जिनको इस काम के लिये वेतन मिलता है उनकी बात अलग है पर आप ऐसा सोचें कि आप सफाई के मामले में जागरूक न हों और दुसरों को अपेक्षा करते रहें तो शायद आप सफल नहीं होंगे।
इसके तीन उदाहरण हैं
पहला-साबरमती आश्रम में जो भी महात्मा गांधी से मिलने जाता उसे अगर वहां रहना था तो पाखाना खुद साफ करना होता था जो कि बड़े से बड़ा व्यक्ति खुशी से करता था। कारण महात्मा गांधी इस कार्य को खुद किया करते थे।
दूसरा- आपने वाराणसी काशी में भारतीय जनता पार्ठी के कार्यकर्ताओं को सडकों पर झाड़ू लगाकर सफाई करते देखा। ऐसा पहली बार हुआ ओर इसका कारण था कि नरेन्द्र मोदी ने उन्हें सफाई के बारे में जागरूक किया। नरेन्द्र मोदी का कहना था कि आप काशी को विश्व का धार्मिक केन्द्र तो बनाना चाहते हो, पर अगर काशी ऐसे ही गन्दी रही तो कौन इसे विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक केन्द्र मानेगा?
तीसरा-जो हमारे नवयुवक विदेशों में खासकर उन्न्तशील देशों में जातें हैं वे वहां बिना हिचकचाहट के सार्वजनिक स्थलों की सफाई का काम कर लेते हैं क्योंकि वहां सफाई का कार्य किसी खास वर्ग के लिए नहीं है। सबको सफाई से प्यार है।

— नीला सूद

नीला सूद

आर्यसमाज से प्रभावित विचारधारा। लिखने-पढ़ने का शौक है।