/ आसान नहीं है…/
दुनिया में कई समाज हैं
लेकिन सच का समाज
कहीं मिल नहीं पाया हमें
मनुष्य के अंदर मनुष्य नहीं
स्वार्थ का बहुत बड़ा विकार है
विभिन्न रूपों का वह आधार है,
यथार्थ के आईने में जिंदगी
एक मीठा झूठ है जग में
अधिकार, सुख भोग की लालसा,
एक मोह है, दुनिया को चलाती है
वर्ण, वर्ग, धर्म सबमें वह घुस जाती है
कल्पित बातें विचार के जग में
मीठी होती हैं, मधुर होती हैं
जो समर्थ है इनको चलाने में
सत्ता – हुकूमत उसीका होता है
अंधेरे में जो इंसान बिकता है,
परदे के पीछे वह चुपके से चलता है
समाज से बेहतर है जंगल
जहाँ स्वच्छा हवा, शुद्ध पानी मिलता है
न कोई वहाँ बिकता है और बेचनेवाला
पशु – पक्षी जीते हैं मनुष्य से बेहतर
सरल सुंदर जीवन स्वेच्छा तंत्र में
बहुत कुछ सीखता आया है मनुष्य
हजारों सालों की इस जीवन यात्रा में
लेकिन वह अपने आपको भूलकर
भटकते हुए बहुत दूर आया है
भूख, प्यास, अतृप्त इच्छाओं में
अपना जान वह लटका दिया है
मनुष्यों की दुनिया में मनुष्य बनकर
आसान नहीं है उसे कदम लेना।