संस्मरण

वो पहला दिन

मुझे २७ मार्च “२०२१ को एक कवि सम्मेलन में बतौर संरक्षक जिस शहर जाना था,  संयोग से उसी शहर में आभासी रिश्ते की मुंहबोली बहन के मकान का निर्माण चल रहा था।जब उसे अपने आने की  जानकारी उसे दी, तो उसने बड़े अधिकार से मिलने और निर्माणाधीन मकान पर आने आमंत्रण दे डाला, उसके अपनत्व और स्नेहिल आमंत्रण को ठुकराने का साहस मुझमें नहीं हुआ, क्योंकि इसके पूर्व वहां जाकर भी अपनी लापरवाही से उससे मिल न सका था,जिसकी शिकायत वो आज भी करती रही,लिहाजा स्वीकृत दे दिया।     आयोजन कमेटी के संस्थापक के आग्रह और अनदेखी, अंजानी बहन से मिलने का लोभ लिए मैं एक दिन पूर्व ही घर से निकल पड़ा, बहन के आग्रह का सम्मान भी करना था, इसलिए यह सुविधाजनक भी लगा। बताता चलूं कि हमारे बीच महज आभासी संवाद भर था, हम कभी मिले नहीं थे। खैर……।       घर से निकलते हुए मैंने अपने आगमन की सूचना से उसे अवगत करा दिया था। जिससे उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने इस बात से अपने बेटे को अवगत कराते हुए उसका नंबर मुझे उपलब्ध कराने के साथ बेटे का नंबर भी मुझे भेज दिया, ताकि मुझे असुविधा न हो, क्योंकि वो विद्यालय में थी। उसके बेटे से मेरी बात होती रही, हालांकि मुझे रास्ते में विलंब हो गया, मेरी यथा स्थिति की जानकारी वो बीच बीच में लेती रही, मुझे रास्ते में विलंब हो गया, तब उसने एक स्थान पर मेरा इंतजार करने की बात कहकर वहीं मुझे रुकने के लिए कहा। यह अलग बात है कि वो मेरे पहुंचने से पहले वहां पहुंच गई थी।      उसके बताए स्थान पर जब मैंने बस से उतरकर उसे फोन किया, फिर हम दोनों पहली बार जब आमने सामने हुए, तो उसने बिना किसी संकोच मेरे पैर छुए, तो मेरा हाथ स्वत: ही उसके सिर पर आशीर्वाद की मुद्रा में पहुंच गया। उसके स्नेह सम्मान से मेरी आंखें नम हो गईं। उसके बाद हम दोनों निर्माणाधीन मकान पर पहुंचे, जहां उसके बेटे ने मेरे पैर छुए। मजदूरों से बड़े भाई के रूप में मेरा परिचय कराया। जलपान के बाद  निर्माण संबंधी बातचीत करते हुए मकान दिखाया। लगभग चार घंटे रहने के बाद मैं अपने गंतव्य पर चला गया, उस समय उसकी भावुकता झकझोरने वाली थी। इतने अल्प समय और पहली मुलाकात में ही उसने मुझे जो मान, सम्मान, स्नेह, अपनत्व दिया, उसका मैं कर्जदार सा हो गया। आगे चलकर उसने अपने हाथों मेरी कलाई में राखी बांधकर अपने रिश्ते को मजबूत कर दिया। आज भी वो छोटी बहन ही नहीं बेटी बनकर भी मेरा मान बढ़ाकर मुझे गौरवान्वित कर रही है।       

आभासी दुनिया से आगे बढ़ते हुए वास्तविक दुनिया में ये था हमारा अपनी लाड़ली बहन के साथ वो पहला दिन, जिसे भूल पाना मेरे लिए असम्भव सा है।

*सुधीर श्रीवास्तव

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