श्रावण शिवमास
भगवान शिव को सावन का महीना अत्यंत प्रिय है । इसी महीने में समुद्र मंथन हुआ था एवं मंथन से निकला हलाहल विष भोलेनाथ ने अपने कंठ में धारण कर नीलकंठ कहलाये थे ।
एक और अन्य कारण यह भी है भगवान शिव सावन के महीने में पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए थे और वहां उनका स्वागत अर्घ्य और जलाभिषेक से किया गया था।
माना जाता है कि प्रत्येक वर्ष सावन माह में भगवान शिव अपनी ससुराल आते हैं। भू-लोक वासियों के लिए शिव कृपा पाने का यह उत्तम समय होता है। भगवान शिव स्वयं ही जल श्रोत हैं । उनके माथे पर गंगा विराजती हैं ।
सावन मास जल अर्पण मात्र से प्रसन्न होते हैं ।
महादेव को जल इसलिए भी प्रिय है कि हलाहल विष की ज्वाला शांत हो सके । शिव को हर वह वस्तु प्रिय है जो प्रकृति प्रदत्त हो । धतूरा कनेर बेलपत्र भांग अति प्रिय है ।
स्त्री-पुरूष या बच्चे भी सोमवारी व्रत रखते हैं । क्योंकि शीघ्र प्रसन्न होने वाले औढ़रदानी को मनाना आसान है ।
व्रत का हमारे हिंदू धर्म में कई तरह से महत्व समझाया जाता है ।
अध्यात्म की दृष्टि से पुण्य फल प्राप्त होता है । सामाजिक दृष्टिकोण से अगर देखा जाये तो संयमित जीवन जीने की प्रेरणा हमें व्रत करने से मिलती है ।
सावन मास में पर्यावरण दिवस भी मनाया जाता है ।
पर्यावरण में हमें पशु पक्षी हों या पेड़-पौधे उनसे मित्रता का संदेश सदाशिव के पूजन से मिलता है । महादेव के परिवार की लीला अद्भुत है । उनका शृंगार भष्म है ,सर्प है । देखा जाये तो आहार-विहार संयमित रखना चाहिए बरसात के दिनों में अत्यंत आवश्यक है ।
इसलिए भी सावन मास को चुना गया है।
भाई-बहन के रक्षा पर्व भी समुद्र मंथन से जुड़ा है ।
रक्षाबंधन और श्रावण पूर्णिमा ये दो अलग-अलग पर्व हैं जो उपासना और संकल्प का अद्भुत समन्वय है। श्रावणी पूर्णिमा एवं रक्षाबंधन एक ही दिन मनाए जाते हैं। पुरातन व महाभारत युग के धर्म ग्रंथों में इन पर्वों का उल्लेख पाया जाता है। यह भी कहा जाता है कि देवासुर संग्राम के युग में देवताओं की विजय से रक्षाबंधन का त्योहार शुरू हुआ।
कुल मिला कर चातुर्मास का प्रारंभ सावन से शुरू होता है । इस वज़ह से भी श्रावण मास सर्वोत्तम है । हे भोलेनाथ पूजा की विधी ना जानूँ ।जप तप को कैसे पहचानूँ । भाव के भूखे भोलेनाथ आते रहना सावन मास
नमःशिवाय.