सावन गीत (अवधी)
नैहर की कर बात रे , सखी सावन आयो !
मोतिन की बरसात रे, सखी सावन आयो !
महकि उठी होई माटी , बूँद की छुवन से ।
धरती जुड़ानि होई , जेठ की तपन से ।
मनवा हमार भागै खिड़की की रहिया से,
देहिया हियैं रहि जात रे, सखी सावन आयो!
नैहर की कर ……………………..
धरती सिंगार कइके, धानी चूनर धरे ।
बरखा ने धोइ धोइ,पात पात कियो हरे।
मोरवा कहे केहू केहू, चातक पुकारै पिया ,
झींगुर जो गावे आधी रात रे,सखी सावन आयो!
नैहर की कर……………………
बदरा ने नैनों से कजरा उधार लियो ।
गले मिलि पेड़न को लता ने दुलार लियो।
बूँदो की टपकन से, चपला के। चमकन से
बोलन लगी है देखो रात रे, सखी सावन आयो!
नैहर की कर………………………
— डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी