गीतिका
क्या कहूँ कि आज मन कुछ अनमना है ।
मर रही सी लग रही संवेदना है ।
भावनाएँ भग्न होकर रो रही हैं,
आँसुओं से स्वप्न रचती कल्पना है ।
क्षोभ ने षडयंत्र से रिश्ता किया है,
गरल की उत्पत्ति की संभावना है ।
व्याध तूने शोक उपवन को दिया है,
नीच ! बस तेरे पतन की कामना है।
राह में हर मोड़ पर चोरों के साये,
अनवरत तुझको बटोही जागना है !
जिंदगी है झूठ ,केवल मौत सच है ,
मौत से फिर व्यर्थ में क्यों भागना है ?
———–© डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी