लघुकथा

लघुकथा – खुद्दारी 

“मधु !आज मैं तुम्हारे निर्णय को ही प्राथमिकता दूँगा। पापा अस्पताल में भर्ती हैं। उनके इलाज के लिए मुझे बैंक में जमा एफडी तोड़ना है।”

 “यह तुम क्या कहते हो। कितने कष्ट से हम दोनों ने पैसे जमाकर भविष्य में मुन्ने की पढ़ाई के लिए एफडी खोला है और तुम…।”

 मुन्ने की पढ़ाई के लिए धीरे -धीरे रूपये जमा कर लूँगा लेकिन इलाज के बगैर पिताजी अगर…।” दीपक की आँखों में पानी भर आया। “आज माँ जीवित होती तो…!”

“अरे रुको ,मुझे मालूम है जब तुम तीन चार साल के थे और गीता दीदी छह साल की तभी मम्मी जी की मृत्यु हो गई थी बीमारी से।

 तुम्हारे बक्से में रखा वह स्केच गवाह है तुम्हारे पिताजी ने कैसे तुम दोनों भाई- बहन की परवरिश की थी। मुझे भी एक खुद्दार पति की पत्नी की भूमिका निभानी है। मुझे कोई आपत्ति नहीं।”

 — निर्मल कुमार दे

निर्मल कुमार डे

जमशेदपुर झारखंड nirmalkumardey07@gmail.com