कविता

सावन

किसी की आँख में सावन

किसी के साथ में सावन

किसी से दूर है सावन

किसी के पास है सावन।

ये भीगे मौसम का जादू है

न मन किसी का काबू है

किसी के लब लजरते हैं

हर मन का हाल बेकाबू है।

मेरे हृदय के द्वारे पे कोई

दस्तक लगाता है

बाहर आओ प्रिय 

देखो तुम्हें

सावन बुलाता है।

मैं खुद को रोक लेती हूं

अपने में समेट लेती हूं

मेरे भीतर भी सावन है

आंखों से बिखेर देती हूं।

किसी के हाथ की मेहंदी 

किसी के हाथ की चूड़ी 

किसी के बाग के झूले 

किसी के माथे की बिंदी 

में सावन झलकता है।

कोई यादों के पतझड़ में

किसी को याद करता है

किसी बिरहन की आंखो से

जब ये सावन बरसता है।

— सपना परिहार

सपना परिहार

श्रीमती सपना परिहार नागदा (उज्जैन ) मध्य प्रदेश विधा -छंद मुक्त शिक्षा --एम् ए (हिंदी ,समाज शात्र बी एड ) 20 वर्षो से लेखन गीत ,गजल, कविता ,लेख ,कहानियाँ । कई समाचार पत्रों में रचनाओ का प्रकाशन, आकाशवाणी इंदौर से कविताओ का प्रसारण ।