सावन
किसी की आँख में सावन
किसी के साथ में सावन
किसी से दूर है सावन
किसी के पास है सावन।
ये भीगे मौसम का जादू है
न मन किसी का काबू है
किसी के लब लजरते हैं
हर मन का हाल बेकाबू है।
मेरे हृदय के द्वारे पे कोई
दस्तक लगाता है
बाहर आओ प्रिय
देखो तुम्हें
सावन बुलाता है।
मैं खुद को रोक लेती हूं
अपने में समेट लेती हूं
मेरे भीतर भी सावन है
आंखों से बिखेर देती हूं।
किसी के हाथ की मेहंदी
किसी के हाथ की चूड़ी
किसी के बाग के झूले
किसी के माथे की बिंदी
में सावन झलकता है।
कोई यादों के पतझड़ में
किसी को याद करता है
किसी बिरहन की आंखो से
जब ये सावन बरसता है।
— सपना परिहार