कविता

ख़्वाहिश

मैं करूं ख़्वाहिश आज की
मिल जाए मुहब्बत ,
मुझे आपकी।

मैं करूं ख़्वाहिश आराम की
मिल जाए जिंदगी,
मुझे किसी काम की।

मैं करूं  ख़्वाहिश राम की
मिल जाए मुहब्बत,
मुझे राधे-श्याम की।

मैं करूं ख़्वाहिश  रात की
मिल जाए तन्हाई,
मुझे शाम की।

मैं करूं ख़्वाहिश ज्ञान की
मिल जाए सिद्धि,
मुझे महाज्ञान की।

— राजीव डोगरा

*डॉ. राजीव डोगरा

भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा कांगड़ा हिमाचल प्रदेश Email- [email protected] M- 9876777233